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(६५) सुव्रतना अवदात वखाणुं ॥ धातकी खेमे विजयपुर जाणुं ॥ पुहवीपाल तिहां राज विराजे ॥ चंद्रावती राणी तस बजे ॥ ५ ॥ जी० ॥ वास वसे व्यवहारी रे ॥ सुर नामें तिहां एक ॥ सदगुरु मुखें एक दिन ग्रही रे॥ अगीआरश सुविवेक ॥ ॥ श्रगीपारश सुविवेकें लीधी ॥ रूडी जमणा विधी की. धी॥ पेटशूलथी मरण लहीने ॥ पोहतो अगिारमे स्वर्ग वहीने ॥६॥जी॥ एकवीस सागर तणो रे॥पाली निरुपम आय ॥ उपन्यो तिहां ते कई रे॥ सुणजो यादवराय ॥०॥ सुणजो यादवराय एक चित्तें ॥ शौरीपुर वसे शेठ समृझिदत्ते ॥ प्रीतिमती तस धरणीने पेटे ॥ पुत्र पणे उपन्यो पुण्य टे॥७॥ जी० ॥ जन्मसमे प्रकट हुई रे ॥ भूमीथी सबल निधान ॥ उचित जाणी तस थापी रे ॥ सुव्रत नाम प्रधान ॥ ॥ सुव्रत नाम उव्यो माय ताये ॥ वाध्यो कुमर कलानिधि थाये ॥ कन्या अग्यार वरयो सम जोडी ॥ अग्यार हुए वर सोवन कोडी ॥ ७ ॥ जी० ॥ विलसे सुख संसारनां रे ॥ दोगुंदक सुर ते. म ॥ अन्यदिवस सद्गुरु मुखें रे ॥ वेशना तेणे सुणी
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