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(६१) जी रे॥ महिमा सुणवा तास नविक मन ऊलशे रे॥ अग्यारश दिन सार सदा हियडे वसे रे ॥ ए आंकणी ॥ ॥ नेम कहे केशव सुणो रे ॥ परव वपुंडे तेण ॥ कल्याणक जिननां कह्यां रे ॥ दोढसो एणे दिन जेण ॥ ॥ दोढसो ऋण दिन सूत्र प्रसिद्धा॥ कल्याणक दश खेत्रना लीधां ॥ अतीत अनागत ने वर्तमान ॥ सर्व मली दोढसो तस मान ॥ ॥जी जिणंद जी जी रे ॥ कल्पवृक्ष तरुमा वडो रे ॥ देव मांही अरिहंत ॥ चक्रवर्ती नृपमां वमो रे ॥ तिथीमां तेम ए हुंत ॥ ॥ तिथीमां तेम ए हुंत वमो रे ॥ नेद कर्म सुनटनो घेरो ॥ मौन आराध्युं शिवपद आपे ॥ संकट वेल तणां मूल कापे ॥३॥जी॥ अहोरतो पोसह करी रे ॥ मान तपें उपवास अगीभार वरस श्राराधीये रे ॥ वली अग्यारे मास ॥
० ॥ वली अग्यारह मास जे साधे ॥ मनवचकायानी शुळं आराधे ॥ लव नवे ते नर सुखीया थाशे ॥ सुव्रत शेव परे गवराशे ॥ ४ ॥ जी० ॥ कृष्ण कहे सुव्रत किश्यो रे ॥ केम पाम्यो सुखशात ॥ नेम को केशव सुणो रे ॥ सुबतना अवदात ॥ ३० ॥
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