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________________ (६५) जा रे वीथुम गोलक अति जला ॥ स्वर्णादिक रे सप्तधातु मेरुली ॥ खीरोदक रे वीथुम गोलक अंबर वली ॥ ॥ ॥ वलीतेधान ने पकवान बहुविध फूल फल मन उजले ॥ अग्यार संख्या एक एकनी ग्वे श्रीजिन आगले ॥ जिन नगती मांमे फुरितखंडे लान लहे नर नवतणो ॥ महिमा वधारे सुविधि धारे तपशुं धारे आपणो ॥ ४ ॥ सात खेत्रे रे रचे धनमन उखसी ॥ संघपूजा रे साहमी जगती करे हसी ॥ दे मुनीने रे ज्ञानोपगरण शुजमती ॥ अगीआरसे रे उजवी तेणे सुव्रतें ॥ ० ॥ तेणे सुव्रतें एक दीवस वंद्या सूरीजयशेखर गुरु ॥ सुणी धर्म अनुमती मागी सुतनी संजम सुखकरु ॥ अग्यार तरुणी ग्रहीय संजम तप तपी अति नीरमळु ॥ लहि नाण केवल मुगती पोहता लह्यां सुख धन उजळु ।। ॥ ५ ॥ दोय सो बह रे एक सो अहम सार रे ॥ खटमासी रे एक चोमासी चार रे ॥ इत्यादिक रे सुव्रत मुनिवर तप करे ॥ अग्यारश रे तिथी सेवे मुनी मन खरे ॥ ॥ ॥ मन खरे पाले शुरू संजम एक दिन राखी तेणे ॥ थर उदर पीडा तेणे दिवसे अचेत सुव्रत व्रतपणे ॥ एक देव वैरी पूर्वनवनो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005385
Book TitlePaushadh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages72
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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