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________________ ( ६७ ) मुऊने जवहित करी जी ॥ साची हो प्रभु साची चित्त अवधार ॥ कीधी हो मे किधी ताहरी चाकरी जी ॥ ३ ॥ तरशुं हो तप साध ॥ तुमची हो प्रभु तुमची तीहां मोटमकीधी जी ॥ देश हो जिन देश तुही समाधी ॥ एवडी हो जिन एवडी गाढिम काइ कीसी जी ॥ ४ ॥ बेहडो हो तुम बेहको साचो मे आज ॥ मोटी हो प्रभु मोटी में खाइया करी जी ॥ दीधां हो वे दीघां वेण माहराज ॥ बुटीश हो म बुटीश केम वेण दुःख ह रे जी ॥ ५ ॥ जवजव हो जिन जवोजवो सरणुं तुऊ ॥ हो जो हो जिन हो जो कहुं के तुं वली जी ॥ देजो हो जिन देजो सेवा मुऊ ॥ रंगें हो प्रभु रंगें प्रणमुं लली लली जी ॥ ६ ॥ त्रीजी हो प्रभु त्रीजी पूरी ढाल ॥ प्रेमें हो प्रभु प्रेमें कांतिविजय कही जी ॥ नमतां हो जिन नमतां नेम दयाल ॥ मंगल हो घर मंगल माला महमहे जी ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ कलश ॥ एम सयल सुखकर ॥ डुरित दुःखहर ॥ जविक सारण जब जल धरु ॥ जव ताप वारक ॥ जगत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005385
Book TitlePaushadh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages72
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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