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________________ (४६) वीर प्रभु सिद्ध थया ॥ सकल संघ आधारो रे, हवे श्ण जरतमां कोण करशे उपगारो रे, ॥ वी० ॥२॥ नाथ विहूणुं सैन्य ज्युं रे, वीर विहूणो रे, संघ ॥ साधे कोण आधारथी रे, परमानंद अनंगो रे ॥ वीर ॥ ३॥ माता विहूणो बाल ज्यु रे, अरहो परहो अथमाय ॥ वीर विहूणा जीवमा रे, आकुल व्याकुल थाय रे ॥ वीर ॥ ४ ॥ संशयदक वीरनो रे, विरह ते केम खमाय ॥ जे दीठे सुख ऊपजे रे, ते विण केम रहेवायो रे ॥ वीर ॥ ५ ॥ निर्यामक नवसमुनो रे, जवअमवी सबवाह ॥ ते परमेश्वर विण मले रे, केम वाधे उत्साहो रे ॥ वीर ॥६॥ वीरथकां पण श्रुत तणो रे, हतो परम आधार ॥ हवे शहां श्रुत आधार डे रे, अहो जिनमुखा सारो रे ॥ वीर॥७॥त्रण कालना सवि जीवने रे, आगमथी आणंद ॥ सेवो घ्यावो विजना रे, जिनपडिमा सुख कंदो रे ॥ वीर ॥ ७॥ गणधर आचारज मुनि रे, सहुने इणी परें सिझा ॥ जव जव आगम संगथी रे, देवचं पद लीध रे ॥ ए॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005385
Book TitlePaushadh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages72
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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