SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११ ) त्यारपढी लघुनीति करवा जवा सारु पुंजणी अने चित्त जलनी याचना करवी. ज्यारे ज्यारे उपात्रणवार ' श्रावकरतां त्रणवार मात्रं करवा परिलेही अथवा श्रयमांथी बहार जवुं पमे त्यारे सही' कहेवी ने अंदर प्रवेश 'निसिही' कहेवी. मात्रं करवा जनारें प्रथम मात्रं करवा जवानुं वस्त्र पहेरी, कुंमी जोइने लेवी. तेमां मात्रं करीने परववानी जग्याए प्रथम कुंमी नीचे मूकी निर्जीव भूमि जोने ' अाह जस्सग्गो' कहने मात्रं परवववुं. परठव्या पढी पाढी कुंमी नीचे मूकी, त्रवार ' वोसिरे ́ कही, कुंकी मूल जग्याए मूकी, अचित्त जलवने हाथ धोइ, वस्त्र बदली, स्थापना सन्मुख यवयुं ने खमासमण दइने इरियावही पमिकमवा. पोसह जीधा पढ़ी जिनमंदिरे दर्शन करवा जरूर जवुं जोइए, न जाय तो आलोयण यावे. तेथी कटास जमणे खने नाखी, उत्तरासंग करी, चरवलो माबी काखमां ने मुहपत्ति हाथमां राखी ने, ईर्षासमिति शोधतां मुख्य जिनमंदिरे जनुं त्यां • Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005385
Book TitlePaushadh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages72
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy