Book Title: Paushadh Vidhi
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 5
________________ 'छ' कहीने मुहपत्ति पमिलेहवी. पठी *खमा० श्या पोसह संदिसाहुं ? श्वं कहीं खमासमण दश् श्छा० पोसह गलं? एम केहq. 'गय' एम गुरु कहे, त्यारे “छ” कही बे हाथ जोमी नवकार गणी, “ इनकारी जगवन् पसाय करी पोसहदंमक उच्चरावो जी” एम कहे, एटले गुरु पोसहदंगक नीचे प्रमाणे उच्चरावे. ___“ करेमि नंते पोसहं, आहारपोसहं देसओ (स. वो ) सरीरसकारपोसहं सवओ । बंजचेरपोसहं सवयो । अबावारपोसहं सबथो । चविहे पोसहं गमि । जाव दिवसं (अहोरत्तं ) पखवासामि । मुविहं तिविहेणं । मणेणं वायाए कारणं । न करेमि न कारवेमि । तस्स जंते पमिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥" * खमा० खमासमण देवू. + इच्छा० इच्छाकारेण संदिसह भगवन् कहे. 1 चार पहोरनो दिवसनो करनारने माटे 'जाव दिवसंकहेवू, आठ पहोरनो करनारने माटे 'जाव अहोरत्तं' कहेछु, रात्रीना चार पहोरवालाने 'जाव शेषदिवसं रत्तं ' कहे, अने दिवसनो चार पहोरनो करनारज रात्रीनो चार पहोरनो पण करे तो कोठी सहित के मारे 'भाष महार' कहे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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