Book Title: Paushadh Vidhi
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४४) हलाने वैरी विच्चें, नवि करशुं वेहेरो ॥ परना अवगुण देखीने, नवि करशुं हेरो ॥ ते॥५॥ धरम स्थानके धन वावरी, बकायने हेतें ॥ पंच महाव्रत लेईनें, पालशुं मन प्रीतें ॥ ते ॥६॥ कायानी माया मेलीने, परीषदने सहेशुं ॥ सुख दुःख सघला विसारीने, स. मनावें रहेशुं ॥ ते० ॥ ७॥ अरिहंत देवनें उलखी, गुण तेहना गाशुं ॥ उदय रतन श्म उच्चरे, त्यारे निरमल थाशुं ॥ ते ॥ ७॥
॥ अथ सिकाचल स्तवन ॥ सिझाचल वंदो रे नर नारी, हां रे नरनारी हो नर नारी, सिझाचल वंदो रे नरनारी ॥ नाजिराया मरुदेवानंदन, ऋषनदेव सुखकारी ॥ सि ॥ १॥ पुंडरीक पमुहा मुनिवर सीधा, आत्मतत्व विचारी ॥ सि० ॥ २ ॥ शिवसुख कारण नवदुःख वारण, त्रिभुवन जग हितकारी ॥ सि ॥ ३ ॥ सम कित शुरू करण ए तीरथ, मोह मिथ्यात निवारी ॥ सि० ॥ ४ ॥ ज्ञान उद्योत प्रभु केवल धारी, नक्ति करूं एक तारी ॥ सि० ॥ ५॥ इति ॥
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