Book Title: Paushadh Vidhi
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 17
________________ (१५) जेने घरे जवु न होय ते पोसहशालाए पूर्वप्रेरित पुत्रादिकं आणेलो आहार करे. ते प्रथम जग्या प्रमार्जीने कटासणा पर बेसी जाजन, मुख विगेरे प्रमार्जी, स्थापना स्थापीने इरियावही पडिकमे, अने निश्चल आसने मौनपणे आहार करे. तथा प्रकारना कारण विना स्वादिष्ट मोदक अने लविंगादिक तांबूल ग्रहण न करे. पडी मुख शुद्ध करीने दिवसचरिम तिविहार- पच्चरकाण करे. त्यार पठी घरे जनार पोसहशालाये श्रावीने अने पोसहशालावाली आहार करयानी जग्याएज अथवा मूल स्थानके इरियावही पडिकमी जगचिंतामणीनु चैत्यवंदन जयवीयराय पर्यंत करे. - पोसहमां मध्यान्हना देव वांद्या अगाउं पञ्चरकाण पारी शकाय नहीं. - पली बीजी वारनी पडिलेहण त्रीजा पहोर पड़ी मुनिराजें स्थापनाचार्यनी पडिलेहणा करी होय तेनी समद करवी. तेनी विधि या प्रमाणे * पोसह विना एकास' विगेरे करनारे पण करीने उद्या अगाउ दिवसचरिम तिविहार- पञ्चख्खाण करवू जोइए. + स्थापनाचार्यनी पडिलेहणा को अगाऊ पडिलेहण न थाय. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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