Book Title: Paushadh Vidhi
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 16
________________ (१५) साढपोरिसि पुरिमट्ठ मुछिसहियं पच्चरकाण कर्यु पाणहार, पञ्चरकाण फासिरं, पालिअं, सोहिरं, तिरिक्षं, किट्टिों, आराहिअं, जं च न आराहिलं तस्स मिठा मि मुक्कडं." (चनविहार उपासवालाने पच्चरकाण पारवानी बीलकल विधि करवानी नथी. पारनारे बेहो एक नवकार गणवो. इति. ____पाणी पीयूँ होय तो याचेलु अचित्त जल कटासणापर बेसीने पीए ने पीधेलुं पात्र खंबीने मूके. पाणीवाला पात्र उघाडां न राखे. हवे जो आंबिल, नीवी के एकासणुं करवा पोताने घरे जQ होय तो तेणे समिति शोधतां जq. अने घरमा प्रवेश करतां 'जयणामंगल” बोलीने आसन (कटासणुं ) नाखी, बेसीने, स्थापना स्थापी, रियावही पडिकमवा. पली खमा० दश् गमणागमणे आलोववा. पठी काजो लइ पाटलो, थाली विगेरे नाजन तथा मुख प्रमार्जीने यथासंनवे अतिथिसंविनाग फरसीने निश्चल आसने मौनपणे आहार करवो. लीधेल वस्तुमाथी बीलकुल पालुं मूकी शकाय नहीं. * एटना अक्षरोज बोलवा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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