Book Title: Paushadh Vidhi
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 25
________________ (१३) य, चैत्यवंदन जयवीयराय पर्यंत करे. पठी खमाण श्वा० संथाराविधि नणवा मुहपत्ति पडिलेडं ? श्वं कही मुहपत्ति पडिलेहीने 'निसिही निसिही निसिही नमो खमासमणाणं गोयमाईणं महामुणीणं' आटलो पाठ, नवकार तथा — करेमिजते' ए बधुं त्रणवार कहे. पठी संथारा पोरिसीनो पाठ बोले. संथारा पोरिसी, अणुजाणह जिठिला अणुजाणह परमगुरु, गुरु गुणरयणेहिं मंडियसरीरा ॥ बहु पडिपुन्ना पोरिसी, श्य संथारए गमि ॥१॥ अपजाणह संथारं, बाहवहाणेण वामपासेणं ॥ कुक्कुडिपायपसारेण, अंतरंतपमऊए भूमि ॥ ५॥ संकोश्यसंडासा, उबहते य काय पंडिलेहा ॥ दवाइउवयोग, ऊसासनिरंजणा लोए ॥३॥ जश् मे हुआ पमायो, श्मस्स देहस्सिमाश् रयणीए ॥ थाहारमुवहिदेहं, सवं तिविहेण वोसिरियं ॥४॥ चत्तारि मंगलं, अरिहंता मंगलं, सिझा मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपणत्तो धम्मो मंगलं ॥ ५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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