Book Title: Paushadh Vidhi
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 11
________________ (ए) कहीने जयवीयराय संपूर्ण कहेवा. त्यार पढी विधि करतां विधि थइ होय तेनो मिठामिकुक्कुमं दईने प्रजातना देववंदनमां बेवटे सजाय कहेवी. ( बपोरे तथा सांजे न कहेवी . ) ते सकायने माटे एक खमा० दइ इछा० सजाय करूं ? श्छं कही नवकार गणीने उनक पगे बेसी एक जण मन्हजिणानी सजाय कहे. श्री मन्हजिणांनी सझाय. मन्द जिलाणं आणं, मित्रं परिहरधरसमत्तं ॥ विहावस्सयंमि, उज्जुत्तो होइ पदिवसं ॥ १ ॥ पसु पोसहवयं, दाणं सीलं तवो जावो ॥ सप्लायनमुक्कारो, परोवयारो जयणा ॥ २ ॥ जिपूया जिणथुणणं, गुरुथु साह म्मित्राणवचनं ॥ ववहारस्स य सुद्धी, रहजुत्ता तिबजुत्ताय ॥ ३॥ जवसम विवेक संवर, जासासमिई बजीवकरुणा य ॥ धम्मसंसग्गो करणदमों चरणपरिणामो ॥ ४ ॥ संघोवरि बहुमाणो पुछयलिहणं पजावणा तिछे || सद्गुाण किञ्चमेां, निच्चं सुगुरूवएसेणं ॥ ५ ॥ हवे व घी दिवस चढया पी पोरिसी भणा Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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