Book Title: Paushadh Vidhi
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( 2 )
विराधना थइ होय, तें सवी हुं मन वचन कायाए करी मिठामि कुक्कमं. बेवटे भगवानादि वंदन करया अगाज खमा० इछा० बहुवेल संदिसाहुं ? छं. खमा० वा० बहुवेल कर ? छं कही नग वानादि वांदीने जेसु कहेवुं. यहीं सुधीनी विधि करवी.
त्यार पी सौनी साथै देव वांदवा तेनी विधि या प्रमाणें देव वांदवानी विधि.
प्रथम खमासमण दई, इरियावदी पक्किमी, एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करीने प्रगट लोगस्स कही, उत्तरासंग नाखीने खमा० वा० चैत्यवंदन करूं 'करेह' छं कही चैत्यवंदन करी नमुथ्थुणं अने जयवीयराय ' याजवमखंमा' सूधी कही खमा० दइ चैत्यवंदन करी नमुथ्थुणं कहीं यावत् चार थोइयो कहेवी. वली नमुथ्थुणं कहीने बीजीवार चार थोश्यो कहेवी. पढी नमुथ्थुणं कही वे जावंती० कही उवसग्गहरं अथवा बीजुं स्तवन कहेवुं,
जयवीराय रधा (या जवमखंमा सूधी ) कहेवा. पढी खमा० दइ चैत्यवंदन करी, नमुथ्थुणं
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