Book Title: Patrimarg Pradipika
Author(s): Mahadev Sharma, Shreenivas Sharma
Publisher: Kshemraj Krishnadas

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Page 10
________________ भाषाटीकासहिता। (९) अब लग्न दशमसाधन कहते हैं-जिसमें प्रथम दशमका इष्टसाधन कहते हैं। सूर्योदयसे-घट्यादिक इष्टमेंसे दिनाई हीन करना (निकालना ) शेष बचे वह दशमभावका इष्ट हो । दशमभाव और लग्नमें छः राशि युक्त करनेसे सुखभाव 'और सप्तमभाव होते हैं (दशमभावमें छः राशि युक्त करनेसे चतुर्थभाव और लग्नमें छः राशि युक्त करनेसे सप्तमभाव हो) ॥३॥ भांशजौ सायनार्कस्य खागांको स्वेष्टयुक्कृतौ। कलाद्यास्तध्रुवघ्नाः स्युर्विपलायास्तु संयुताः ॥४॥ तदल्पकोष्ठजौ भांशी ग्राह्यौ लिप्तादिका वियत् । अल्पेष्टविवरात्पार्थान्तराप्तांशादिसंयुतौ ॥५॥ अयनांशादिवियुताल्लग्नं मध्यं स्फुटं भवेत् । । सायनसूर्यकी राशिअंशके समान दशमपत्र और लगपत्रके कोष्ठकमें अपना अपना घट्यादिक इष्ट युक्त करना ( दशमपत्रके कोष्ठकमें दशमका इष्ट लग्नपत्रके कोष्ठकमें जन्मसमयका इष्ट मिलाना) तदनन्तर सूर्यकी कलाविकलाको सायन सूर्यकी राशिके ध्रुवसे गुणा करना; गुणन करके आये हुए अंकोंको इष्टयुक्त किये हुए कोष्ठकके विपलमें युक्त करना ॥ ४ ॥ उस इष्टयुक्त किये हुए कोष्ठकसे अल्प ( न्यून ) कोष्ठक जिस राशिअंशमें हो वह राशिअंश लेना, उसके नीचे कला विकला शून्य शून्य लिखना, तदनंतर इष्टयुक्त कोष्ठक और अल्पकोष्ठकका अंतर करना, शेष अंतरमें अल्पकोष्ठक और उसके आगेके ( ऐष्य ) कोष्ठकके अंतरका भाग देना, लब्ध आवे वह अंश जानना शेष बचे उनको साठ गुणा करना फिर अंतरका भाग देना, लब्ध कला आवे फिर शेषको ६० साठगुणा करके अंतरका भाग देना, लब्ध विकला आवे, ऐसे आये हुए अंशादि तीन फलोंको इष्टयुक्त कोष्ठकसे अल्पकोष्ठकके आये हुए राशि अंशादिकमें युक्त करना ॥ ५ ॥ अयनांश हीन करना सो लग और दशमभाव स्पष्ट हो । उदाहरण। श्रीगणेशाय नमः ॥ स्वस्ति श्रीसंवत् १९२८ शके १७९३ प्रवर्तमाने अमांत-माघकृष्ण,पूणिमांव-फाल्गुनकृष्ण३तृतीयायां भौमवासरे घ. २५५४९ १ शकमेंसे ४४४ चारसे चुम्मालीस हीन करनेसे अयनांश होते हैं । अयनांशोंको स्पष्टसूर्यमें मिलानेसे सायन सूर्य होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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