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प्रस्तावना
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कुछ योगायोग ही ऐसा रहा कि 'टॉड-राजस्थान' जितना अधिक लोकप्रिय हुआ, उससे कहीं अधिक टॉड का यह यात्रा-विवरण उपेक्षित रहा। पिछले सवा सौ वर्षों में जब मूल अंग्रेजी ग्रंथ का दूसरा संस्करण भी नहीं छापा गया, तब उसके हिन्दी अनुवाद की कौन सोचता ? किन्तु, आज जब भारत अपने नवनिर्माण के लिये अग्रसर हो रहा है और तदर्थ अपने विगत इतिहास को ठीक तरह से समझने तथा उसका सही मूल्यांकन कर भविष्य के लिये उससे शिक्षा लेने को विशेष रूप से व्यग्र तथा प्रयत्नशील है, तब टॉड के इस यात्राविवरण जैसे प्रेरणापूर्ण विचारोत्पादक ग्रंथ का गहराई के साथ अध्ययन और विस्तृत विवेचन अत्यावश्यक है। जनसाधारण के साथ ही अंग्रेजी भाषा से अनभिज्ञ भारतीय विचारकों के लिये इस ग्रंथ को सुलभ करने के लिये राष्ट्रभाषा हिन्दी में इसका अनुवाद करना सर्वथा अनिवार्य हो गया था। अतः 'राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान' धन्यवाद का पात्र है कि इस महत्त्वपूर्ण ग्रंथ का यह हिन्दी अनुवाद प्रकाशित कर रहा है । साथ हो हमें श्री गोपालनारायण बहुरा का भी विशेष कृतज्ञ होना चाहिये, जिन्होंने बड़ी लगन और पूरे परिश्रम के साथ यह हिन्दी अनुवाद तैयार किया है।
किसी भी उच्चकोटि के अंग्रेजी ग्रंथ का मुहावरेदार सुपाठय सरस भाषा में ठीक अनुवाद करना यों भी एक कठिन कार्य है, और जब उसकी रचना टॉड जैसे भावपूर्ण प्रोजस्वी लेखक ने की हो तब तो वह और भी दुष्कर हो जाता है। टॉड का अध्ययन अतीव विस्तृत था और विभिन्न विषयों संबंधी उसे बहुत अधिक जानकारी थी। यही कारण है कि उसके ग्रंथों में सीधे या परोक्ष रूप से विभिन्न बातों संबंधी इतने अधिक उल्लेख या संकेत पाये जाते हैं कि उन सब हो के सही संदर्भो का पूरा पता लगा लेना किसी प्रकार सरल नहीं है, और वे अनुवादक के कार्य को विशेष कठिन बना देते हैं । परन्तु संतोष का विषय है कि यह सब होते हुए भी इस यात्रा-विवरण का हिन्दी अनुवाद करने में श्री बहुरा को पर्याप्त सफलता मिली है। श्री बहुरा स्वयं भी इतिहास के विद्वान् हैं और कई वर्षों से शोध और संपादन के कार्य में लगे हुए हैं, अतः पाठकों की आवश्यकताओं और कंठिनाइयों से वे पूरी तरह परिचित हैं। इधर उन्होंने एलेक्जेण्डर किन्लॉक फोर्स कृत 'रास-माला' का भी हिन्दी अनुवाद कर उसका सयत्न संपादन किया है, जिसके अब तक तीन खण्ड 'मंगल प्रकाशन, जयपुर', द्वारा प्रकाशित हो चुके हैं। गुजरात और सौराष्ट्र के इतिहास का उन्होंने गहरा अध्ययन किया है और तद्विषयक संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश आदि भाषाओं के प्राचीन आधार-ग्रंथों की उन्हें बहुत अच्छी जानकारी है। अत:
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