Book Title: Parshvanath
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Gangadevi Jain Delhi

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Page 13
________________ पहला जन्म सामग्री अन्त में एक प्रकार की वेदना देकर, स्थायी वियोग से व्यथित करके विलीन हो जाती है। अतः जो जीव शुद्ध और स्थायी मंगल चाहते हैं उन्हें अहिंसा, संयम और तप की आराधना करनी चाहिए। इस मंगलमय धर्म की शक्ति असीम है। जो अपने हृदय मे इसे धारण करता है, उसके चरणों में सामान्य जनता की तो बात ही क्या, देवता भी नतमस्तक होते हैं । धर्म ही संसार सागर से सकुशल पार उतरने के लिए जलयान है । अनादि काल से आत्मा मे जो अशुद्धि मल चिमटा हुआ है उसे धर्म द्वारा ही दूर किया जा सकता है। जीवन में धर्म ही सार तत्त्व है, और इसकी आराधना करने से ही मनुष्य सच्चे मनुष्यत्व का अधिकारी होता है । धर्म दो प्रकार का हैसर्व विरति और देश विरति । हिंसा, असत्य, चौर्य, मैथुन और परिग्रह रूप पापों का पूर्ण रूप से परित्याग करना सर्व विरति है। सर्व विरति महात्मा मर्यादित श्वेत वस्त्र, पात्र आदि धर्मोपकरणों के अतिरिक्त, जो संयम मे सहायक होते है, अपने पास और कुछ भी नहीं रखते । वे मुंह पर मुखस्त्रिका बांधते है, बचाखचा, रूखा-सूखा भोजन करके संयम-पालन के निमित्त शरीर की रक्षा करते है, और सांसारिक बातो से जरा भी सरोकार नहीं रखते । इस प्रकार के धर्म को धारण करने वाले महात्मा मुनि कहलाते हैं । श्रावक धर्म बारह व्रत रूप है । जो मुनि धर्म को स्वीकार करने का सामथ्य रखते है, उन्हें उसे धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर अग्रसर होना चाहिए। किन्तु जिनमे इतनी क्षमता नहीं है, उन्हे गहस्थधर्म को तो धारण करना ही चाहिए । तभी आत्मा का उद्धार होगा। यही धर्म मोक्ष रूपी नगर मे जाने का राज मार्ग है । यद्यपि दोनों धर्मों मे विकलता और सकलता

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