Book Title: Pandav Charitra Mahakavyam
Author(s): Devprabhsuri, Shreyansprabhsuri
Publisher: Smrutimandir Prakashanam

View full book text
Previous | Next

Page 791
________________ ७७६] [पाण्डवचरित्रमहाकाव्यम् ॥ पाण्डवः सह ६/३५ | पाण्डुसेनोऽथ १७/२४२ | पार्थिवस्तां ६/३६७ पाण्डवश्च ७/३२० | पाण्डोः पुत्रांस्तु ४/१९८ | पार्थिवानामलङ्कारः १५/३३ पाण्डवा १५/११५ | पाण्डोरन्यस्य हा १/५२२ | पार्थीय पार्थिवा- १३/१३३ पाण्डवाः १३/७७० पाण्डोरवनिर्मा- १/४६६ | पार्थेन पोत्रिणः ८/२११ पाण्डवाः क्व ८/१०२ पाण्डोस्तपःसुते पार्थोऽथ पश्यतस्तस्य ८/२१४ पाण्डवा अपि १३/३५४ पातयन्तस्तटीस्तुङ्गा- ११/१७२ पार्थोऽपि ११/१०६ पाण्डवा अपि १३/३८९ पात्रं कलाकलापस्य १/४६१ पार्थोऽपि नाति- ५/१८० पाण्डवा अपि ४/४०२ पाथेयैरिव १२/४२५ पार्थोऽप्यमनय- ४/२८५ पाण्डवानथ १५/१२७ पादचारं ७/२१० पार्थोऽब्रवीद- ५/३८२ पाण्डवानां १३/२५० पादपान्तरितो ३/२९७ पार्थोऽवादीदहो ८/३२७ पाण्डवानां ७/४१ | पादारविन्दं २/४३९ | पार्श्वनाथः स वः १/४ पाण्डवानां वधूलाभे ४/३८८ पान्ति स्म १३/१३१ पार्वानि १३/८४ पाण्डवानामियं ७/२५७ | पान्तु श्री शान्ति पालिद्रुमालिनीडानां ८/४७७ पाण्डवानामुदात्तं १०/२७८ पान्थः पुरस्ता- १/४१० पावयत्यन्तरात्मानं ११/३३३ पाण्डवान्पुण्डरी- १७/१२२ पान्थनिर्मन्थ १/५६९। पावितं सुकृतै- ५/६५ पाण्डवाश्च विराटश्च १०/४५८ पापीयांसस्तु ११/३११ पाशालम्बितमा- १/५१८ पाण्डवाश्चण्ड- १७/१५० पाययंश्च पयः १३/८५३ पास्यन्ति मे १२/४०७ पाण्डवेय- १३/९८१ पारणं पाण्डुतनया- ९/३७८ | पिकीपञ्चमनि- ४/४२२ पाण्डवेयसभा- ८/१३४ | पारणाविधये ९/३५७ | पिङ्गलाव्यपदेशेन पाण्डवेयस्य ५/१८५ पारदारिक ! ५/३२५ | पिङ्गले पाण्डवा- ९/३२४ पाण्डवेयाः १३/१०५५ | | पारयित्वा ततो १८/१८५ पिण्डिताभिरिव १७/१५ पाण्डवेयाः ७/१७१ पारावारोपकण्ठे १४/२८ पिण्डितैः १३/७६६ पाण्डवेयास्ततः ११/३८० | पार्थ ! नन्वेति १३/६७४ पितरीवातिवा- ८/१४४ पाण्डवेयास्ततस्तेन १७/१२८ | पार्थः पृथुलवेदिस्थां ३/३०४ पितरौ दुष्प्रतीकारा- १६/२४१ पाण्डवेयास्तदारभ्य १०/३६ | पार्थः सोऽयं १३/६४९ पिता चं वसुदेवो २/३३४ पाण्डवेयैः ६/२११ | पार्थदत्तासना- ७/६३० पिता भवत्य- १/२३६ पाण्डवेषु दीवयस्सु ९/२४३ पार्थनिक्षूनमौलीनां १०/३६६ | पिता वाऽस्तु १/११७ पाण्डवेष्वथ १३/१०३७ पार्थबाणाङ्किताः ८/२४० पितामहं १३/२३१ पाण्डवोऽपि ७/३०१ | पार्थमेकमनेकासां ५/४३८. १५/१४ पाण्डुः कुन्ती १७/२२८ | पार्थस्य खुरली- १४/८६ | पिताऽपि भिष्म- १/२४२ पाण्डं च धृतराष्ट्रं ४/२९० | पार्थस्य सर्व- १३/६१९ / पिताऽप्युत्थाप्य १/१२२ पाण्डुनन्दनकल्पा- १२/२९४ | पार्थस्येव यशः पितुः प्रीत्यर्थ- १३/२०९ पाण्डुमालोकितुं ११/३२१ | पार्थानुन्मथ्य ११/२७७ पितुर्गिरमिति श्रुत्वा ६/१०१३ पाण्डुयॊणमभाषिष्ट ३/४८७ | पार्थालोकनला- ५/४४१ | पितुर्वाचमिमां ५/३९ पाण्डुश्च ७/३ | पार्थिवः कथया- ३/९३ | पितृतुल्यः पितृ- १/४६२

Loading...

Page Navigation
1 ... 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862