Book Title: Pandav Charitra Mahakavyam
Author(s): Devprabhsuri, Shreyansprabhsuri
Publisher: Smrutimandir Prakashanam

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Page 810
________________ परिशिष्टः [१] पाण्डवचरित्रमहाकाव्यगतगाथानामकाराद्यनुक्रमः ॥] [७९५ विमानानशे व्योम ९/२२ | विलम्ब्याथ १३/२४० | विश्वस्तं ७/१८६ विमारत्नमारुह्य ४/१७४ | विललाप च हा १/३६८ | विश्वाद्भुतश्रिय- ६/८६ विमुक्तस्फार- ५/३०५ | विललाप च हा ९/२७५ | विश्वे विश्वम्भरा- ६/६८ विमुक्तिपथपाथेय- ११/२४७ विलीन इव १३/८०४ विषं पीयूषगण्डूषः ८/९६ विमुच्य चापमुत्तालः ८/२४६ विलुप्तसत्त्व- ५/१२८ विषप्रमोष १३/६९४ विमुच्य तदहं १२/१८५ विलेपनं करा- २/१०९ विषमैः श्रृङ्खाला- ९/१८१ विमुच्य तमिमं १८/७६ विलेसुर्दिवि ४/३०६ विषमैव गतिः ३/४३८ विमुच्य भोज्य १७/३३८ | विलोकन्तेऽन्यमन्यस्य ४/४५५ | विषयाः सहवास्तव्याः ५/४६५ विमुञ्च सत्वरं १२/९१ | विलोकयंस्तमाया- १०/२९ | विषया अपि १६/१३२ विमोच्य बन्धना- ९/१३९ | | विलोकितुमिवा- १०/३७२ | विषसाद जनः ६/३३० वियत्युत्पतितं १३/७६७ विलोक्य ७/२२६ विषादिनं तदानी १७/२९८ वियोगार्तिमनुप्राप्तः ५/३०७ विलोक्य त्वां च ७/२७३ विष्णुर्विज्ञान- २/४०० विरचय्य १४/११७ | विलोक्य मूल१४/११७ ९/५२ विष्णोः १४/२५ विरजाश्चेत्यमी ३/१३० | विलोक्य सायुधान- १०/२१ | विष्वक्सेनः १६/१६५ विराटं विकटा- १०/२६७ विलोक्यानर्गल- १/३२ | विष्वक्सेनादय- ६/१५८ विराटः कुरु- १०/४४३ | विलोक्यावधिना ६/५६२ विसङ्कटस्फुटाभोगा ५/१४० विराटकन्यया १०/४७७ विलोलपल्लवाश्चे- १२/१३३ विसङ्कटेऽपि ७/१० विराटदयितां १३/९८ विवक्तपरिवारेण ६/११८ विसृज स्वैरचाराय ६/१०१२ विराटनगरे किन्तु ९/३७६ | विवाहदीक्षा- १६/१७६ | विसृज्य दूतमेतेन २/५३ विराटपुरसंरोध- । १०/२२८ | विवाहोत्साह- १६/१३४ | विसृज्य सहदेवाद्यान् १४/२४१ विराटभूपति १०/२७७ | विवेकाऽऽख्यं १५/२५ | विस्तीर्णवेपथुभीत्या १०/३३१ विराटभभजो १०/२५० | विशन्तो हृदयं १०/२८० विणतो तां १३/८२८ | विस्फुरच्छफरीनेत्रा १४/६ विराटस्य गिरा १०/४५१ | विशन्स्वरूपलावण्य-१८/१६३ | विस्मयस्मेरनेत्राभिः ५/४३२ विराटस्य श्रियो १०/४५० | विशांपत्युर्यशः ६/६९ | विस्मयस्मेरराज- ६/१११ विराटाधिपतिः ४/२१५ विशारदेषु पुरतो ४/१५ | विस्मयोत्फुल्ल- १/२०२ विराटो दैवतं ११/३८ विशालाक्षस्य ८/२९१ | विस्मयोत्फुल्ल- २/३५६ विरूपया विलोकेत १०/८६ | विशिखा इव १३/९८० विस्मार्य तदपस्मारं ११/२८३ विरेजुः कुञ्जराः १२/२१० १३/१९६ विस्मितश्च ७/५४० विरोधयति ११/१२३ विशुद्धे स्थण्डिले ४/३३८ | विस्मृतातङ्कनिः- १०/३५५ विरोधिनां जये ११/३७२ विशेषज्ञः १५/३४| विस्मृत्य पयसः १२/२१७ विरोधेनाप्युपाय॑न्ते ११/४९ विश्रामाय ६/३७७ विस्मृत्य पयसः ८/४९४ विलक्षमनसा तेन १०/११७ विश्वकर्माऽपि ४/११० विस्मेरमनसो- १८/१५७ विलपन्त्यामिति १३/१०७९ | विश्वतेजस्विनामीशे १३/४३० | विषेण मासापण विलप्य तुमुलं ९/२८३ | विश्वभद्रङ्करः १८/२१४ | विहरन्नन्वहं १/४२३ विलम्बमम्बुनः ९/२६३ | | विश्वसंहारिभिः १३/८४२ | विहरस्य गुरवे- ३/३०१

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