Book Title: Pandav Charitra Mahakavyam
Author(s): Devprabhsuri, Shreyansprabhsuri
Publisher: Smrutimandir Prakashanam
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परिशिष्टः [१] पाण्डघचरित्रमहाकाव्यगतगाथानामकाराद्यनुक्रमः ॥] [८०१ समं नलस्य ६/३१६ | समादत्स्व १४/१८० | सम्पन्नहृदयाश्वासः ५/२५५ समं निस्त्रिंशनि- १३/२९१ | समाधेरच्युतः ६/७४३ सम्परायप्रमीतानां १४/२५५ समं नेमि
१४/७४ समानवयसं ८/३४५ | सम्परायरसोद्रे- १३/६८१ समं पित्रा
१६/३२३ समाप्तिमागते १०/२६६ | सम्पराये परासूनां १४/२४० समं प्रद्युम्नसाम्बा- १४/२४८
समाप्य
। १४/२ | सम्प्रत्यप्रतिमल्लास्ते १४/४९ समं महिम्ना १३/८३ समाहृत्य हृषी- १३/१३८ सम्प्रत्यमङ्गलं १२/४७३ समं सत्त्वे न १३/८० समीकाङ्कहता- १३/४४२ सम्प्रत्यस्ति ११/१४७ समं समस्तभूतानां ९/३०५ समीके मनसा १३/४५
सम्प्रत्येव
१०/४१७ समक्षमेव ९/३१२ समीहांचक्रिरे १७/७ सम्प्रत्येव जये १७/१९० समग्रविषय
१५/४२ समुच्चार्य ६/३७९ | सम्प्रत्येष
१२/८७ समग्रेणावरोधेन १६/३२४ | समुत्तीर्य विमानेभ्यः ९/१४३ | सम्प्राप्तसङ्गमा- १/५४४ समजायत वैराय ८/२६६ समुत्पेदे तदाऽन्योऽपि ६/७२ सम्प्राप्तेनामुना १४/२१४ समण्डलमिवायातं १७/२१ समुद्धषित- १/१२० सम्भाव्य १३/१०१८ समतानिम्नगापूरे १६/२५९ समुद्यते हरिं २/४०८ सम्भाव्य भूमिपाल- १/४६४ समन्तादन्तयन्ना- १३/५६२ समुद्र इव १२/२२६ | सम्भाव्य सुभटं १८/१३१ समन्युरभिमन्युस्तु १३/३५९ समुद्रविजयः १४/२४२ सम्भ्रान्तया
६/७११ समभूवन्यथा- १२/३३५ समुद्रविजयः १६/२२५ सम्मुखं प्रसरन्तीव १४/२३२ समभ्यर्च्य
१४/३२५ |
समुद्रविजयः १/४२७ सम्मुखं सर्व- ४/१४० सममश्रुजलोत्पीडैः ५/२८५ | समुद्रविजयः २/१०३ सम्मुखस्याप्यसौ १३/७०५ समयेऽपि समागत्य ३/१०३ | समुद्रविजयः २/४४० सम्मुखीनक्षुतेना- ४/२०९ समयोऽपि मुनेरद्य ५/४६ | समुद्रविजयस्तस्यां १२/४५ सम्मुखीनौ १३/६७८ समरं संस्मरन्नेवं १५/१२२ | समुद्रविजया- २/३१९ | सम्मोहं मोहना- ९/४१ समरे येन
४/२४० समुद्रविजया- ६/११४ | सम्यक्त्वं जगृहुः १८/१८० समर्थो न १६/१५१ | समुद्रविजयादीनां १४/२०५ | सम्यगाराधितन्या- १७/२ समारक्षकाग्रण्यः ६/६९६ | समुद्रविजयानी- २/४३३ | सरःसलिलसेकेन १३/९८९ समस्तकरण- ४/१७९ समुद्रविजयेनाथ १६/२९९ | सरलैकस्वभावोऽयं ५/३३८ समस्तजाह्नवेयादि- ५/४२६ | समुद्रविजयो १४/२६८
१३/५८० समस्तत्रिजगत्- १७/३८ | समुद्रविजयो २/३७४ | सरोजानां रजः २/२६९ समस्तमथ १३/९९९
समुद्रविजयो
१२/२५ सरोमाञ्चा च १४/२८६ समस्तमपि १६/६९ समुर्द्धन्यमणी
सरोऽपि च
९/३४९ समस्तवास्तु- १५/९१ समृद्धिगर्धिना १५/९२ | सर्पत्सारिपक्षा- १३/३२३ समस्ताभिः
२/४४५ सम्पत्पुटकिनी- ७/२०१ सर्पसन्तमसे १३/७२६ समागच्छदगा- १२/३५१ सम्पदामादिकन्दं १७/८३ सर्वं मनसि
१०/१८ समागम
१८/२ सम्पद्भिर्दो- १८/१२ सर्वंकषेषु तेज- ४/४०७ समाजग्मुर्मही- २/४० सम्पन्नसर्वस- ५/१६ सर्वक्रियाकौशल- १८/२७१
सरित्पूर

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