Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji

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Page 7
________________ तथा अन्य परम्पराओं में प्रचलित विधि-विधानों के साथ प्रासंगिक बनाने का प्रयत्न भी किया है, चाहे पंचाशकप्रकरण में आगमिक आधारों पर गृहस्थ आचार और मुनि आचार का प्रतिपादन किया गया हो किन्तु उस सम्बन्ध में उठने वाले अनेक प्रश्नों को लेकर गंभीर चर्चाएं भी की गई हैं, जैसे - जैन विधि-विधानों के द्रव्यपक्ष और भावपक्ष को लेकर जो उन्होंने गंभीर चर्चा की है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। इसमें यह स्पष्ट हो जाता है कि पंचाशकप्रकरण का शोधदृष्टि से किया गया यह अध्ययन गृहस्थ आचार और मुनि आचार के सम्बन्ध में न केवल परम्परागत विचारों को प्रस्तुत करेगा, अपितु उस सम्बन्ध में हरिभद्र का क्या सोच रहा है और उन्होंने किस प्रकार समीक्षात्मक दृष्टि से चिन्तन किया है, इसे भी प्रस्तुत करता है। साथ ही इस अध्ययन में, मैने यह बताने का भी प्रयत्न किया है कि परम्परागत विवेचनाओं में हरिभद्र किस सीमा तक एक नवीन दृष्टि को लेकर प्रस्तुत होते हैं। आचार्य हरिभद्र ने मूर्तिपूजा और जिनमन्दिर निर्माण में होने वाली द्रव्य हिंसा की समस्या को लेकर भी गंभीर चर्चा की है। द्रव्य मूर्तिपूजा में जो सूक्ष्म हिंसा के तत्त्व सन्निहित हैं वे कहां तक आगम सम्मत हैं एवं कहां तक करणीय और अकरणीय हैं, इसकी चर्चा आचार्य हरिभद्र विस्तार से करते हैं। ___ हरिभद्र उस संक्राति काल में हुए थे, जब जैन धर्म के तीनों ही सम्प्रदाय चैत्यवास के दलदल में फंसे हुए थे। श्वेताम्बर परम्परा में चैत्यवास का सबल विरोध करने वाले आचार्यों में हरिभद्र का एक महत्वपूर्ण स्थान है। सम्भवतः ये पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपने युग में मुनि आचार में आये शैथिल्य का खुले शब्दों में विरोध किया। इस बात का उन्होंने सम्बोधप्रकरण के कुगुर्वाभास में विस्तृत विवेचन किया है। इस प्रकार जहां एक ओर हरिभद्र परम्परागत विचारों के प्रस्तोता हैं, वहीं दूसरी ओर वे मुनि आचार में आई हुई शैथिल्य की प्रक्रिया के प्रबल विरोधी भी हैं। इस शोध में मैंने यह पाया कि जिनशासन में आचार्य हरिभद्र भी एक ऐसा व्यक्तित्व है जो आचार में शैथिल्य का तो विरोधी रहा है, किन्तु दूसरी ओर विचार में उदारता का समर्थक भी है, प्रस्तुत अध्ययन में आचार्य हरिभद्र की इस विशेषता को यथा प्रसंग रेखांकित करने का प्रयास किया गया है। चूंकि आचार्य हरिभद्र एक योग साधक भी थे, अतः न केवल उन्होंने अपने योग सम्बन्धी ग्रन्थों में अपितु पंचाशक प्रकरण में भी योग और ध्यान की गंभीर चर्चा की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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