Book Title: Nyayasindhu Prakaranam
Author(s): Vijaynemusuri
Publisher: Chimanlal Gokaldas Ahmedabad
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॥ज्ञानदर्शनयोयौंगपक्षादिविचारः ॥
(१६७)
Anna-numan
द्वैविध्यमस्य पुनराहतसम्प्रदाये ॥
तत्रादिमं भवति सांव्यवहारकाख्यम् ।। स्यात्पारमार्थिकमनन्यसहायजीवापेक्षानिजावरणकर्मलयादितोऽन्यत् ॥९०८॥ साकल्यवद्विकलतावदिति द्विधाऽन्त्यं,
स्यानिनिजावरककर्मलयात्तु तत्र ॥ यद्रव्यपर्ययसमग्रप्रकाशशालि
तत्केवलं प्रथममादिमदक्षयश्च ॥९०९॥ तज्ज्ञानदर्शनभिदा द्विविधं बुधेन्द्र
रुक्तं समग्रनिजगोचरभाजि पूज्यैः ।। स्वस्वस्वभावबलतो व्यवधान
शून्यमुत्पत्तिमनवति तत्परहेतुशून्यम् १९१०।। ग्राह्यक्षयोदयवशात्तु कथञ्चिदस्य
नाशोदयावपि मतो जिनसम्प्रदाये ॥ .. उत्पत्त्यवस्थितिलयान्वयितापि सत्ता
युज्येत तेन ननु तत्र न चान्यथा सा ॥९११॥ तञ्च द्वयं युगपदेव समामनन्ति श्रीमल्लवादिप्रमुखा व्यवहारमाप्ताः ॥ ... शुद्धर्जुसत्रमुपगम्य द्वयं क्रमोत्थं
प्राहुश्रुतैकरसिका जिनभद्रमुख्याः ॥९१२॥ एकन्तु सङ्ग्रहनयस्य समाश्रयेण वादी समादिशति योक्तिकसिद्धसेनः ॥

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