Book Title: Nyayasindhu Prakaranam
Author(s): Vijaynemusuri
Publisher: Chimanlal Gokaldas Ahmedabad
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| ज्ञानदर्शनयोर्योगपद्यादिविचारः ॥ (१६९)
तद्भाष्य एव मतमस्य तु सप्रपञ्चमालोकनीयमनवद्यम कुण्ठबोधैः ॥ दृश्याऽत्र तन्मतरहस्यविदोऽपि सूरेः श्री हेमचन्द्र विबुधस्य प्रगल्भवृत्तिः ॥ ९९९ ॥ सामान्यगोचरतया खलु दर्शनं तज्ज्ञानन्तदेव तु विशेषप्रकाशकत्वात् ॥ अस्पृष्टगोचरतयाऽथ च दर्शनं स्था
नेत्रादिवदिति वक्ति च सिद्धसेनः ॥ ९२०॥ एकक्षणे तदुभयावृत्तिकर्मनाशादेकं द्विधर्मकमिदं भवदर्थतस्स्यात् ॥ सामग्र्यभाजि जनके न जनेर्विलम्बो दृष्टो यतो भवति तत्कमिकं द्वयन्नो ॥ ९२९ ॥ नो यौगपद्यमपि तत्र ततो नयज्ञ
र्वाच्यं तथानुपगमागमभङ्गभीत्या ॥ पार्थक्यतः कथनमप्यनयाश्श्रुते तु
धर्मइयावगतये न पृथक्त्वसिद्धयै ॥९२२|| इत्यादितन्मतरहस्य मखण्ड्यमन्यैविस्तारतस्त्वभयदेवकृतेस्सुवृत्तेः ॥
ज्ञेयं बुधैर मलबोधविधानदक्ष
र्भाव्या परस्परविरोधहतिश्च बुद्धया ॥ ९२३ ॥ ज्ञानं द्विधा विकलमार्हतसम्प्रदाये तत्पारमार्थिकतयाऽभिमतं यदन्त्यम् ॥

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