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कुछ समय के पश्चात् उपरोक्त १९ सम्प्रदायोंमें से कुछ लोप हो गई तथा कुछ नयी उत्पन्न हो गई। इसके परिणाम स्वरूप कनिकके समय में चार समुदायोंमें निम्नलिखित १८ सम्प्रदाय थे१. आर्य सर्वास्तिवाद
(१) मूल सर्वास्तिवाद
(२) काश्यपीय
(३) महीशासक
(४) धर्मगुप्तीय (५) बहुश्रुतीय (६) तामरथारीय 1. (७) विभज्यवादिन् २. आर्य सम्मतीय
(८) कुरुकुलक (९) आवन्तिक (१०) वात्सीपुत्रीय
३. आर्य महासांघिक (११) पूर्व शैल
(१२) अपर शैल (१३) हैमवत
(१४) लोकोत्तरवादिन् (१५) प्रतिवारिन्
४. आर्य स्थविर
(१६) महाविहार (१७) जेतवनीय, ओर (१८) अभयगिरिवासिन्
यह सब वैभाषिक दर्शन के सिद्धान्त वाले हैं।
यह दार्शनिक विचारों में सौत्रान्तिक सम्प्रदाय के हैं ।
उपरोक सब सम्प्रदायें हीनयानकी हैं, यद्यपि पीछेसे यह महायान में भी मिल गयी थीं। इनके दार्शनिक विचार क्रमसे वैभाषिक और सौत्रान्तिक मत के हैं। कनिष्क के स्थापित किए हुए महायानने माध्यमिक और योगाचार नामके दो और दार्शनिक सम्प्रदायों की नींव रखी। अब बौद्धों में चार दार्शनिक सम्प्रदायें हो गई. - (१) वैभाषिक, (२) सौत्रान्तिक, (३) माध्यमिक, और (४) योगाचार ।