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भूमिका
क्योंकि उनमें 'उपनय' तथा 'निग्रह' का भी कुछ वर्णन किया गया है । नीति ( अथवा न्याय ) शब्दका उल्लेख पालीके केवल एक ग्रन्थ सन्दिप हमें ( जो कि भिक्षुसूत्र भी कहलाता है ) मिलता है । इससे भली प्रकार पता चल सकता है कि उस समयके बौद्ध आचा ने इस विषयपर कितना प्रकाश डाला है ।
ईस्वी सन्के आरम्भ में भारत पर कुशान, तुरुष्क अथवा सीथियन लोगों के आक्रमण हुए। उनके एक सरदारका नाम कनिष्क था । उसने काशमीर, पल्हव और देहलीको विजय किया । उसके विषय में कहा जाता है कि उसीने ईस्वी सन् ७८ में एक सम्वत् की नींव डाली। उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया और बौद्धोंकी एक नयी सम्प्रदाय महायानको स्थापित किया । तबसे पाली तिपिटकमें वर्णित प्राचीन सम्प्रदाय हीनयान कही जाने लगी। महायान क्रमशः नेपाल तिब्बत, मंगोलिया, चीन, जापान और कोरिया आदिमें फैल गया और हीनयान सिंहल और वहाँ से वर्मा, और श्याम आदिमें फैल गया । भारतमें दोनों ही सम्प्रदाय चलते रहे ।
कनिष्क के संरक्षण तथा पार्श्व ( या पूर्णक ) और वसुमित्र के निरीक्षण में ५०० बौद्ध भिक्षुओंकी एक वृहत्सभा जालन्धर में हुई । जिसमें पालीके सुत्त, विजय तथा अभिधम्म इन तिपिटकोंकी टीका स्वरूप क्रमशः सूत्र उपदेश, विनय विभाषा और अभिधम्म विभाषा बनाये गये । महायान सम्प्रदाय के साहित्य में सबसे प्राचीन यही ग्रन्थ हैं।
यद्यपि कनिष्क से पहिले भी संस्कृतमें कुछ बौद्ध ग्रन्थोंकी रचना हो चुकी थी ( उदाहर गके लिये अभिधर्म विभाषा अथवा अभिधर्म महाविभाषा शास्त्र जिसकी रचना कनिष्ककी सभा में की गई थी, कात्यायनी पुत्रके अभिधर्म ज्ञान प्रस्थान शास्त्र ( यह पाली अभिधम्म पिटककी टीका है और बुद्धके निर्वाणके ३०० वर्ष पश्चात् तथा कनिष्क से १०० वर्ष पहिले बनाया गया था) के ऊपर टीका है । ) तथापि संस्कृतको बौद्धसाहित्यकी भाषा बनानेका श्रेय उसीको प्राप्त है। उसके समय से लगाकर असंख्य संस्कृत बौद्धग्रन्थोंकी रचना हुई है, जिनमेंसे नवधर्म संज्ञक नौ ग्रन्थ महायान सम्प्रदाय के विशेष रूपसे पूज्य हैं।