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भूमिका
नव धर्म यह हैं
(१) अष्ट साहस्रिका प्रज्ञापारमिता (२) गंडव्यूह, (३) दशभूमीश्वर, (४) समाधिराज, (५) लंक्रावतार, (६) सद्धर्मपुण्डरीक, (७)तथागतगुह्यक, (८) ललितविस्तर और (९) सुवर्णप्रभास । इनमें अनेक स्थलों पर न्यायका भी उल्लेख किया गया है। .. ___ बुद्धने अपना उपदेश पाली अथवा मागधी भाषामें किया था। उसके पश्चात् उसकी शिक्षायें बौद्ध भिक्षओं की तीन सभाओंमें एकत्रित की गई। ये सभायें राजगृह, वैशाली और पाटलिपुत्रमें क्रमसे राजा अजातशत्र, कालाशोक, और अशोकके संरक्षणमें हुई थीं। पहिली सभा ईसासे ४१० वर्ष, दूसरी ३९० वर्ष तथा तीसरी २५५ वर्ष पूर्व हुई थी । ( पहिली सभा बुद्धके निर्वाणके संवत्में, दूसरी उसके १०० वर्षपश्चात् और तीसरी अशोकके शासनकालके १७वें वर्ष में हुई थी। अशोक ईसासे २७२ वर्ष पूर्व सिंहासनपर बैठा था)। जो भिक्षु प्रथम सभामें एकत्रित हुए थे वह (१) थेरा कहे जाने लगे। वैशालीकी द्वितीय सभाके निर्णयसे दस सहस्र भिक्षु थेरावादके कुछ नियमोंका उल्लंघन करनेके कारण थेरा संघसे प्रथक कर दिये गये । ये निकाले हुए धर्मगुरु (२) महासांघिक कहलाये। मूल बौद्ध धर्ममें से प्रथक होने वाली पहिली सम्प्रदाय यही थी। उन्होंने थेरावादमें कुछ नियम घटाये तथा कुछ बढ़ा दिये। इसके पश्चात् बुद्धके निर्वाणके २०० वर्षोके भीतर मूलधर्मसे प्रथक् ( Heretical ) सोलह और सम्प्रदायें चलीं, उनके नाम यह हैं-(३) गोकुलिका, (४) एकम्बोहारिक, (५) पण्णति, (६) बाहुलिक (७) चेतिय, (८) सब्बत्थि, (९) धर्मगुत्तिक, (१०) कस्सपीय, (११) संकतिक, (१२) सुत्त, (१३) हिमवत, (१४) राजगिरीय, (१५) सिद्धत्यिक, (१६) पुब्बसेलिय, (१७) अपरसेलिय, (१८) वजिरिय ।
तीसरी सभाके पश्चात् लगभग ईसाके २५५ वर्ष पूर्व अशोकके पुत्र महिन्दने तिपिटकों की शिक्षाका सिंहलमें प्रचार किया। जहाँ के पुरोहितोंने इसको कण्ठ रख २ कर चलाये रखा । महावंश अ. ध्याय ३३ के अनुसार प्रथम ही ये राजा वत्तगामणिके समयमें लिखे गये, जिसने ईसासे १०४ वर्ष से ७६ वर्ष पूर्व तक सिंहलका राज्य किया था। तिपिटकके अतिरिक्त अन्य भी बहुतसे ग्रन्थ पाली में लिखे गये थे जिससे पाली साहित्य बहुत विस्तीर्ण हो गया। :