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भूमिका।
(१) प्राथमिक निवेदन। हर्षका विषय है कि आजकलके विद्वानोंका हृदय क्रमशः धार्मिक विषयोंमें उदार विचारोका होता जा रहा है। भिन्न २ मत वाले विद्वानोंके द्वारा भिन्न २ मतकी पुस्तकोंका सम्पादन उसीका! परिणाम है। यद्यपि प्राचीन कालके भारतीय विद्वान् भी भिक मतोंके ग्रन्थोंका अध्ययन करते थे तथापि उनका अध्ययन प्राउन ग्रन्थोका खन्डन करनेके उद्देश्यसे होताही था, जैसा कि स्वामी शङ्कराचार्य, जैन न्यायके उद्धारक श्री अकलदेव आदिके ग्रन्थोंको देखनेसे पता चलता है। हर्षकी बात है कि आजकलके बहुतसे विद्वानोंका यह मत हो गया है कि प्रत्येक धर्ममें अधिक परिमाणमें सत्य विद्यमान है। पश्चिमीय विद्वानोंके विचार इस विषयमें बहुत ही प्रशंसनीय हैं। हमारे बहुतसे ग्रन्थोंको और बौद्ध साहित्यके अधिकांश ग्रन्थोंको संसारके प्रकाशमें लानेका श्रेय उन्हींको प्राप्त है। प्रस्तुत ग्रन्थ और उसके कर्ता आचार्य धर्मकीर्ति और धर्मोंत्तरके विषयमें भी हमको पहिली पहल उन्हींसे विदित हुआ था। यद्यपि आचार्य धर्मकीर्ति और न्यायबिन्दुका नाम सर्वदर्शनसंग्रह इत्यादि हिन्दग्रन्थों और प्रमेयकमलमार्तड आदि जैन ग्रन्थोंमें विद्यमान होनेके कारण भारतीय विद्वानोंको पहिलेसे ही विदित था, किन्तु अनुसन्धानप्रियताके अभावके कारण उनका जानना न जानना एक सा ही था। हमको पहली पहल 'अचार्य धर्मोत्तर' का नाम बतलानेवाला पश्चिमीय विद्वान् (W. Wassiljew) डब्ल्यू वैसिलज्यू नामका एक रूसी विद्वान् था । यह विद्वान् सन् १८४० से १८५० तक ( दस वर्ष तक ) पेकिनमें रहा । यह चीनी और तिब्बी दोनों भाषाओका अच्छा पण्डित था । इसने इन भाषाओंके मानसे बहुतसे बौद्ध ग्रन्थोंका पता लगाया।
उन्होंने अपने सबसे पहिले ग्रन्थ 'बुधिज्म, इटस् डाग्मस, हिस्ट्री ऐण्ड लिटरेचर' ( Buddhism, its Dogmas, History& Literature ) में धर्मोत्तरके विषयमें बहुत कुछ बतला दिया है।