Book Title: Nyayabindu
Author(s): Dharmottaracharya
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Granthmala

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Page 15
________________ निवेदन । बौद्धदर्शनके प्रेमियोंके सन्मुख मैं न्यायबिन्दुका यह हिन्दी अनुवाद लेकर उपस्थित हो रहा हूँ। अनुवाद कैसा है यह पाठक ही बतला सकेंगे। क्योंकि मुझे इस विषयमें कहने काकुछ अधिकार नहीं है। यह अवश्य है कि इस अनुवादके करने में बौद्धोंके पारिभाषिक शब्दोंकी व्याख्या करना तो दूर उनके समझनेमें भी मुझे महीनों उलझना पड़ा है। आशा है कि पाठकोंको उनमें अब विशेष न उलझना पड़ेगा। . ग्रन्थकी भाषाके लिये मुझे सबसे प्रथम क्षमा प्रार्थना करनी है। क्योंकि न्यायका कोई भी ग्रन्थ हिन्दीमें न होनेसे मुझे इसके लिये स्वयं ही ढंग सोचना पड़ा है। भाषा सम्बन्धी त्रुटिया निकालने वालोंसे मुझे यह प्रार्थना है कि उनको जिस वाक्यमें भाषासम्बन्धी त्रुटि जान पड़े उसको प्रथम स्वयं ठीक करके ही दूसरोंको दिखलावें। ऐसा करनेसे उन्हें इस सम्बन्धमें मेरी कठिनताका बहुत कुछ आभास हो जावेगा। उचित तो यह होता कि कुछ संस्कृत न्याय तथा कुछ हिन्दी साहित्यके विद्वानोंकी एक समिति न्यायकी भाषा को निश्चित करती, किन्तु यह न होता देखकर मैंने स्वयं ही इस विषय पर लेखनी उठायी है। आशा है कि इसके लिये हिन्दी भाषाके विद्वान् मुझे क्षमा करेंगे। __यदि मूल संस्कृत ग्रन्थका शाब्दिक अनुवाद ही किया जाता तो वह किसी कामका भी न होता। अतएव वाक्य पूरा करनेके लिये मुझको दूसरे शब्द डालने पड़े हैं जो [ ] ऐसे कोष्टकमें रखे गये हैं । भावको स्पष्ट करने वाले शब्द सादे कोष्ठकमें रखे गये हैं। संस्कृत टीकामें मूलके सब पाठान्तर हम नहीं दे सके हैं, सो इस पुस्तकमें दे दिये गये हैं। इस पुस्तकका पाठ भी उसकी अपेक्षा बहुत शुद्ध है। .. आशा है कि इस ग्रन्थसे हिन्दी साहित्यके दर्शन विभागको कुछ उत्तेजना मिलेगी। .. भदैनी, बनारस . .) ता० २८ जून १९२४. ई०) .. चन्द्रशेखर शास्त्री।

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