Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 16
________________ पृष्ठ संख्या 388 389 390 391 393 से 401 393 395 3. 396 400 402 से 406 402 403 405 विषय 10. नियुक्ति, उपयोगी गुण, समर्थन व अधिकारी का कर्तव्य 11. सहसा धन लाभ होने पर राजकर्त्तव्य, अधिक मुनाफा खोरों के प्रति राज कर्तव्य व अधिकारियों में परस्पर कलह से लाभ 12. धनाढ्य अधिकारी से लाभ, संग्रहयोग्य मुख्य धान्य संचय का फल 13. संचित धन का उपयोग, प्रधान व संग्रह करने योग्य रस व लक्षण का महत्त्व 19. जनपद - समुद्देश: 1. देश के विविध नाम और उनकी सार्थकता 2. देश के गुण व दोष क्षत्रिय व वैश्यों की अधिक संख्या वाले ग्रामों से. व स्वदेशी एवं परदेशी के प्रति राज्य का कर्तव्य निर्धारण 4. सेना व राजकोष की वृद्धि के कारण, विद्वान् व विनों को देने योग्य दान-भूमि व तालाब दान आदि में विशेषता 20. दुर्ग समुद्देश: 1. दुर्ग शब्दार्थ एवं उसके भेद 2. दुर्ग विभूति व दुर्ग शून्य देश तथा राजा की हानि 3. शत्रु दुर्ग नष्ट करने का उपाय, राज कर्नव्य व ऐतिहासिक दृष्टान्त 21. कोष समुदेशः 1. कोष का अर्थ, गुण व राजकर्तव्य 2. कोष हानि से राजा का भविष्य, कोष माहात्म्य, कोषविहीन राजा के दुष्कृत्य व विजयलक्ष्मी का स्वामी 3. निर्धन की कटु आलोचना, कुलीन सेवा अयोग्य राजा, धन-माहात्म्य, मनुष्य की कुलीनता और. बड़प्पन व्यर्थ होने के कारण 22. बल-समुद्देशः 1. बल शब्द की व्याख्या, प्रधान सैन्य, गज माहात्म्य, युद्धोपयोगी गजों की शक्ति अशिक्षित हाथी और उनके गुण 3. अश्यों की सेना, उसका माहात्म्य व जात्याश्व का माहात्म्य जाति अश्व के १ उत्पत्ति स्थान व जातियां 5. रथ सैन्य का माहात्म्य व सप्तम-उत्साही सेना एवं उसके गुण 6. ओत्साहिक सैन्य के प्रति राज-कर्तव्य, प्रधान सेना का माहाल्य स्वामी द्वारा सेवकों को दिये सम्मान का प्रभाव 7. सेना विरुद्ध के कारण 8. सेवकों को दातव्य धन, वेतन न मिलने पर भी सेवक का कर्तव्य 407 से 411 407 408 410 413 से 421 415 6 417 418 419 -

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