________________
( १६९) . भावार्थ-वृक्षोना मूळीयामां नाखवामां आवेल जळ पल्लवोना अग्रभागपर प्रगट थाय छे. ते प्रमाणे गुप्त रीते कई उपकार करवामां आवे, तो पण महर पुरुषो तेने बहुज उत्कृष्ट समजीने धारण करे छे. २८
ते साधवो भुवनमंडलमौलिभूता ये साधुतां निरुपकारिषु दर्शयंति। आत्मप्रयोजनवशीकृतखिन्नदेहः पूर्वोपकारिषु खलोऽपि हि सानुकंपः॥
भावार्थ-तेज साधुओ भुवन मंडळना मुगटरूप छे के जेओ निरुपकारी जनो तरफ पण पोतानी सजनता प्रदर्शित करेछे. कारण के पोताना प्रयोजननी खातर वशीभूत तथा पर उपकारथी विमुख थयेल एवो खलपुरुष पण पूर्वना उपकारी जनोपर तो अनुकंपाज दर्शावे छे. २९
तृष्णां छिंधि भज क्षमा जहि मदं पापे रति मा कृथाः सत्यं ब्रूह्यनुयाहि साधुपदवीं सेवस्व विद्वजनान् । मान्यान्मानय विद्विषोऽप्यनुनय