Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi

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Page 467
________________ ( ४५६ ) काको गढ काया तणो विणसंतां नहि वार ॥ चेती लेजे जीवडा करी चित्त विचार ॥ १ ॥ कर्या कर्मनो क्षय नथी कोडी वर्ष हजार ॥ अवश्य भोगववा पडे शुभ अशुभ विचार ॥ २ ॥ कुले कलंक अपयश करे महत्व सदा हरनार धन नाशे अरति अधिक तजीयें मित्र जुगार ॥ ३ ॥ कृत्याकृत्य विचारने उत्तम जाणे आप मध्यम गुरु उपदेशथी अधम न जाणे पाप ॥ ४ ॥ कठीन पंथ हे साधुका जेसा ताड खजूर ॥ चढे तो चाखे प्रेमरस पडे तो चकनाचूर ॥ ५ ॥ कठीन पंथ हे साधुका खराखरीको खेल ॥ नानीजीको घर नही शेठो होय तो जेल ॥ ६ ॥ कुकवि चितारो पारधी कुवणिक ने भाट ॥ गांधी नरक सिधाविया वैद्य देखाडे वाट ॥ ७ ॥ काल करे सो आज कर आज करे सो अब ॥ अवसर बित्यो जात है फिर करेगा कब ॥ ८ ॥ करी भरोंशो कर्मनुं कहे थशेज थनार ॥ आप तजे उद्योगने ए पण एक गिमार ॥ ९ ॥

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