Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi

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Page 476
________________ (४६५) जेनी संगतथी कदी थोडं पण दुःख थाय। वली तेनी साथे वसे ते मूरखनो राय ॥२२॥ जेना मनमा जे गम्युं ते तेना गुण गाय ॥ झेर तणा जमनार ते अमृत जाणी खाय ॥२३॥ जेना मनमा जे गमे गुण तेना ते गाय ॥ काग लींबोडी खात है कोयल आंबरस खाय ॥२४॥ जगडो करी निज नारीथी बाले निज घरबार ॥ वलती विमासण करे ए पण एक गमार ॥ २५॥ ज्या भणेल नहि भूपती त्यां अंधेर जणाय ॥ अधिकारी अवलं करे लांच लेइने न्याय ॥ २६ ॥ जे जन जब जूठो पडे एक वार को काम सुणतां संशय ऊपजे तेहना बोल तमाम ॥ २७॥ . जामे जतनी बुद्धि है इतनो कहे बनाय ॥ वांको बुरो न मानीये ओर क्याथी लाय ॥ २८ ॥ जल ज्युं प्यारा माछली लोभी प्यारा दाम ॥ मातने प्यारा बालका भक्ति प्यारी राम ॥ २९॥ जन्मी तरत जाणे नही हित अहित विचार ॥ जाणे जेम तेम समजी ले नानपणे नरनार ॥ ३०॥ ३०

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