Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi

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Page 490
________________ ( ४७९ ) मागन कदी आलश करे तस्कर जाय न जाय ॥ चाकर बिचारा क्या करे लूण पराया खाय ॥ १७ ॥ मन कर्तव्य न्यारा फरे तन संतनके संग ॥ तुलसी एही वियोगसे लाग्यो नहि प्रभुरंग ॥ १८ ॥ महा महीनानु मावतुं जंगल मंगल गीत ॥ समय विनानुं बोलवु त्रणनी एकज रीत ॥ १९ ॥ यौवन धन जाशे जरुर उडे जेम कपूर ॥ भगवतने भज भावथी झुं हंसा चाटे धूळ ॥ १ ॥ योग्य खरच करतुं भलुं अधिक न करवुं क्यांइ ॥ लेखण मरी लखवुं भलुं पण रेडी नहि रुसनाई ॥ २ ॥ रयणी गुमावी सोवतां दिन परनिंदा मांय ॥ हीरा जेवो मनुष्यभव कवडी बदले जाय ॥ १ ॥ राग विना रागोडवुं निर्धनीयो फूलाय ॥ निर्बल सबलने गुण करे ते सहु फोकट जाय ॥ २ ॥ रोगराहत देह ज्यां लगें इंद्रिय पंच बलवान ॥ जरा दूर वली ज्यों लगें करो धर्म शुभ ध्यान ॥ ३ ॥ रूप ज्ञान वली बल घटे विवेक पण होय राख ॥ चिंताथी व्याधि वधे जिम वणिक एक लाख ॥ ४ ॥

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