Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi

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Page 492
________________ लीये लूटी धन कृपणन का राजा का चोर ॥... खंखेराय छे सासडे बोरडी केश बोर ॥४॥... लाड वडे अवगुण लहे शुम भत्ति आपे मार ॥ तेथी बालक ताडीएं लाड न गुण करनार ॥ ५॥ विपद् बराबर सुख नही जो थोरे दिन होय ॥. इष्ट मित्र बंधु प्रिया जान परत सब कोय ॥ १॥ .. वाहि व्यसन व्याधि अने वैरवाद व्यभिचार ॥ वकार छ वधवा थकी दुःखतणा दातार ॥२॥ व्यापारें धन संपजे खेतीथकी अनाज ॥ अभ्यासे विद्या मिले खडग बले मिले राजा ॥३॥ वा फरे बादल फरे फिरे नदीका पूर ॥ उत्तम बोल्या नवी फिरे जो पश्चिम उगे सूर ॥४॥ विण बोलाव्यो बहु बके विण तेडाव्यो जाय ॥ . विवेकने नहि ओलखे ते मूरखनो राय ॥५॥ विण परण्यो ते परणवा परण्यो तजचा चाय ॥ . . पहेलांने पाछल थकी बिहुँ जणा पस्ताय ॥६॥ व्यसनी कपटी लुब्ध नर वृथा बचन वदनार ॥ ... मित्राई महिए चारथी तेज सुखी संसार ॥७॥

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