Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi

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Page 479
________________ ( ४६८ ) दुर्जनकृत निंदा थकी सज्जन नवि निंदाय ॥ रविभणी रज नाखतां आपें अंधो थाय ॥ ६ ॥ दुःख देवुं पण दैवनुं दया भरेलु काम ॥ अति दयाथी रोगीने आपे वैद्यो डाम ॥ ७ ॥ दुःख आवे रवुं नही कर्म बनावट काम ॥ उद्यम करतां मानवी पामे सिद्धि तमाम ॥ ८ ॥ दया धर्मको मूल है पाप मूल अभिमान ॥ तुलसी दया न छोडीएं जबलग घटमे प्रान ॥ ९ ॥ दाताने मन धन नही सूरामन नही श्वास ॥ पतिव्रताने प्राण नही देह न समजे दास ॥ १० ॥ देशाटनना लाभथी बधे बुद्धिबल आप ॥ अनुभव लईने नवनवा कदी न खाय थाप ॥ ११ ॥ दया ते सुखनी वेलडी दया ते सुखनी खाण ॥ अनंता जीव मुक्तें गया दया तणे परिमाण ॥ १२ ॥ दोलत बेटी सम कही खरची कबुन जाय ॥ पाली पोसी मोटी करी पण परघर चलि जाय ॥ १३ ॥ धर्म करंतां धन वधे धन वध मन वध जाय ॥ मन वध्ये महिमा वधे वधत वधत वध जाय ॥ १ ॥

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