Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi
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(४७३) प्रभु साथे प्रीतडी वेश्या साथे हसवू ॥ दो दो बाता किम बने लोट खावु ने भस, ॥ १२ ॥ पीपलपान खरंत हसती कुंपलीआ॥ अम वीति तुम वीतशे धीरी बापलीआ ॥ १३ ॥ परनारीकी प्रीतडी जेशी लसन खान ॥ . खूणे बेसी खाइए तोय प्रगट निदान ॥ १४ ॥ पंडितनी पंक्ति विशें नही अभण शोभाय ॥ हंसनी हार थकी जुओ जूहूँ बगलं जणाय ॥१५॥ प्रीत करिये सराफकी जेशो शिरको वाल ॥ कटे कटावे फिर हुवे कबु न छोडे ख्याल ॥१६॥ परनारीनी प्रीतमां लंपट थई लपटाय ॥ जर जशने जोवन खहे ए. मूरखनो राय ॥ १७ ॥ पामर उचके पालखी बेशे धनीका बाल ॥ ... हुकम चलावे हाम धरी पैसाथी महीपाल॥१८॥ पतिव्रता भूखे मरे ने छीनाल खाय लाडु ॥ गांडा घेला घोडे चडे ने दाया खेंचे गाडं। १९ ॥ पंथी जीव पामी गयो नरभव नगर बजार ॥ सोदागर समजी जई करो पुन्य वेपार ॥२०॥

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