Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi

View full book text
Previous | Next

Page 487
________________ (४७६ ) बार बोलावण बेसणुं बीडोने बहु मान ॥ जश घर पांच बबा नही ते घर जाण मशाण ॥१८॥ बार कोशपर बोली बदले तरुवर बदले शाखा ॥ जाते दाडे केश बदले पण लख्खण न बदले लाखा १९ भणतां पंडित निपजे लखतां लहीयो थाय ॥ चार चार गाउ चालतां लांबो पंथ कपाय ॥१॥ भूल थई के चेतवू एज खरो उपाय ॥ भूल्यो त्यांथी गण फिरी जेथी भूल न थाय ॥२॥ भाग्यहीन जल थल भमे अगर गगन पाताल ॥ घर उठी वनमां चले त्यांपण अग्नि जाल ॥३॥ भेद ज्ञान साबू भयो समरस निर्मल नीर ॥ धोबी अंतर आतमा धोवे निज गुण चीर ॥४॥ भोंय सूवारं भूखे मारूं तनकी पाडूं खाल ॥ ईतना करतें ना डरे तो पीछे करुं निहाल ॥५॥ भूख न जाणे भावतुं प्रीत न जाणे जात ॥ निद्रा न जाणे साथरो ज्यां सूता त्यां रात ॥६॥ भाग्यहीनकू ना मिले भली वस्तुको योग । द्राख पके जब बागमें काग मुख होत हे रोग ॥७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500