Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi

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Page 481
________________ ( ४७० ) धन वंछे एक अधम नर उत्तम वछे मान ॥ ते धानक शत्रु छंडीएं जीहां लहियें अपमान ॥ ११ ॥ निवरो नर निंदा बिना कहो करे शुं काम ॥ पर जिंदा धंधो करी लहे नरक दुःख दाम ॥ १ ॥ नमन नम्म फरक है बहुत नमे नादान | दगलबाज दोगुन नमे चित्ता चोर कमान ॥ २ ॥ निर्लज्ज नर लाजे नही करतां कोटी धिक्कार ॥ नाक कषायुं तो कहे अंगें ओछो भार ॥ ३॥ नाणुं बिन नीति तणुं घरमां नही रहेनार ॥ मीआंजी लावे मूठीएं अला ऊंठ हरनार ॥ ४ ॥ निंदा हमारी जो करे मित्र हमारा सोय ॥ बिन साबू बिन पानीयें मेल हमारा धोय ॥ ५ ॥ नीची नजरें चालतां मोटा ऋण गुण थाय ॥ दया पले कांटो टले पग पण नवि खरडाय ॥ ६ ॥ नावुं धोवुं बहु जलें मनको मेल न जाय ॥ मीम सदा जलमे वशे धोतां कलंक न जाय ॥ ७ ॥ नीच स्वभावना मानवी कढ़ी न उत्तम होय ॥ atri काला कोलशा ते नवि उज्ज्वल जोय ॥ ८ ॥

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