Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi

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Page 474
________________ ( ४६३ ) ज्यां जेनो महि पारखो त्यां तेनो नहि काम ॥ धोबी विचास क्या करे सन्यासीका गाम ॥ ४ ॥ जल सर्प सोनी अने राजा बेसार परदेशी ए पांचथी सदा चेतीने चाल ॥ ५॥ जिशें प्रभुको डर नहि नही पंचकी लाज ॥ उसशे छेड क्युं कीजीएं चूप भली महाराज ॥ ६ ॥ जगत पड्युं मुख कालने केडा मोर जनार ॥ घंटीने घाले पड्या दाणा लोट थनार ॥ ७ ॥ जेशी प्रीति हराममे तेसि हकमे होय ॥ चला जाय बैंकूठमे पला न पकडे कोय ॥ ८ ॥ जब तुं आव्यो जगतमां लोक हशे तुं रोय ॥ एसी करणी ना करें पीछेशें हांशी होय ॥ ९ ॥ जूठा बोला नरतणुं सघलूं जूठ मनाय ॥ विछु करडे भांडने तो साचे जूठ मनाय ॥ १० ॥ जेना मनमां जे गम्युं तेहने तेनुं काम ॥ आकतणा कीडा तणुं आंबामां नहि ठाम ॥ ११ ॥ जो जामें निशदिन बशे सो तामे परवीन ॥ गज कु सरिता ले चली उलटा चालत मीन ॥ १२ ॥

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