Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi

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Page 475
________________ (४६४ ) जरने बस आ जगत सहु जरथी विनय विवेक ॥ जर खरचे सलुमले मले न अकल एक ॥ १३ ॥ जब लग तेरा पुन्यका पूगे नही करार ॥ तब लग तकसीर माफ है अवगुण करो हजार ॥ १४ ॥ जो मति पीछे उपजे सो मति आगल होय ॥ काज न बगडे आपणुं दुर्जन हशे न कोय ॥ १५ ॥ जलकी शोभा कमल है तनकी शोभा पील ॥ धनकी शोभा धर्म है कुलकी शोभा शील ॥ ९६ ॥ जोड्या बे ऋण दोहरा तेथी न कवि कहेवाय ॥ राखे हलदर गांठीओ गांधी केम गणाय ॥ १७ ॥ जननी जणाने जन मला कां दाता कां सूर ॥ नहि तो रहे बांजणी मत गुमावीश नूर ॥ १८ ॥ जीवजीवके आसरे जीव करत है राज ॥ तो रहेता प्रभु आसरे क्युं बगडेगा काज ॥ १९ ॥ जीवंतां जो जश नही जश वीण क्युं जीवंत ॥ जश लईने जे आथम्या ते रवि पेला ऊगंत ॥ २० ॥ जे जन पामे पूरणता ते कढ़ी नव फूलाय ॥ पूरण घट छलके नही अपूरण होई छलकाय ॥ २१ ॥

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