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(४५७) कामी कुल न ओळसे लोमीन गोलपा . मरण वेला नहि ओळखे भूख्यो मखे अखाज ॥१०॥ काम पड्याथी जाणीये जे नर जेहको होगी . तपाव्या विण खोटुं खरं. कहे कसोनुं कोर ॥११॥ करत करत अभ्यासशें जडमति होत सुजान रसडी आवत जावतसे शिलापर होत निसान ॥१२ कदी कष्ट पाम्या विना गुण पामे नहि कोयः॥ वध बंधन सहे. फूल जो तो गुणवालुं धाव ॥ १३ ॥ कटु लामे कल्याणना वचन विचारो आप ॥ कटु औषध पीधा विमा मटे न तनको ताप ॥१४॥ कोयल नव दीये कोईने हरे ना कोईलु जागा मीठा क्चनथी सर्व- कोकालपर अनुराम ॥ १५ ॥ काया काचो कुंम छ जीव मुसाफर पास ॥ तारो त्यां लगे जाणजे ज्यां लगे श्वासोश्वाश। १६॥ काला केश मटी गया कन्या सर्व सफेत ॥ यौवन जोर जतुं रयु चेत चेत नर नेता ॥ १७॥ कामी क्रोधी कृपण नर मानीने मद अंध। चुगल जुबारी चोरटा देखत आठे अंधः॥ १८॥ -