Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi

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Page 456
________________ ( ४४५ ) भवेदवज्ञा । निजांगना यद्यपि रूपराशिस्तथापि लोकः परदारसक्तः ॥ ७८ ॥ भावार्थ — पोताना देशमां उत्पन्न थयेल पुरुष कदाच गुणवान् होय - तथापि तेनी अवज्ञा थाय छे. जुओ, पोतानी स्त्री रूपवती छतां लोको परस्त्रीमा आसक्त थता जोवामां आवे छे. ७८ संपूर्ण कुंभो न करोति शब्दमर्धो घटो घोषमुपैति नूनम् । विद्वान्कुलीनो न करोति गर्व गुणैर्विहीना बहु जल्पयंति ॥ ७९ ॥ भावार्थ — भरेलो घडो शब्द करतो नथी पण अर्ध ( अधुरो) घडो छलकाय छे. तेम विद्वान् अने कुलीन पुरुष कदापि गर्व करतो नथी, परंतु गुणहीन जनोज बहु बकवाद करे छे. ७९. हस्ती स्थूलतरः स चांकुशवशः किं हस्तिमात्र कुशो दीपे प्रज्वलिते प्रणश्यति तमः किं दीपमात्रं तमः । वज्रेणापि हताः पतंति गिरयः

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