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( ४५२ )
अथ गुजराति श्लोक
अति निद्रा कौतुकरुची काम क्रोध शृंगार ॥ स्वाद लोभ साते तजो प्रथमथीज पठनार ॥ १ ॥ अपयश पसरे जगतमां ज्ञान ध्यान मतिहीन ॥ चित्त भ्रम अरति वशे पररमणी आधीन ॥ २ ॥ आयुः घटे दिन दिनप्रति काल रहे नित्य पास ॥ मूरख ममता किम करे क्षणमे जाशे शाश ॥ ३ ॥ एक दीवस पूरण शशी क्षीण घणा दिन होय ॥ सुख थकी तिम दुःख घणुं आपद अंत न जोय ॥ ४ ॥ अपना अपना इष्टको मनन करे सहु कोय ॥ इष्ट विणा मानवी फोकट शक्ति खोय ॥ ५ ॥ आछे दिन पीछे गये हरिसें कीयो न हेत ॥ अब पिछतायें क्या हूवे चीडीयां चुनगई खेत ॥ ६ ॥ आदर्या अध विच रहे कर्म करे सो होय || मन माने आनंद कर मन माने तो रोय ॥ ७ ॥ आलस मूंडी भूतडी व्यंतरनो वलगार ॥ पेशे जेहना अंगमां बहुत करे बिगार ॥ ८ ॥