Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi

View full book text
Previous | Next

Page 451
________________ (४४०) सुशीलता च । एतानि यो धारयते स विद्वान्न केवलं यः पठते स विद्वान् ॥६६॥ __ भावार्थ-सत्य, तप, ज्ञान, दया, सुज्ञजनोने प्रणाम अने सुशीलता-ए गुणोने जे धारण करे छे-ते विद्वान् समजवो. केवळ जे मुखपाठमात्रज करे छे, ते विद्वान् नथी. ६६ संपदो महतामेव महतामेव चापदः। वर्धते क्षीयते चंदो न तु तारागणः कचित्॥६७॥ __ भावार्थ-संपत्ति के आपत्ति पण महापुरुषोनेज प्राप्त थाय छे. जुओ, चंद्रमा वधे छे अने क्षय पामे छे. परंतु ताराओ कई वृद्धि के क्षय पामता नथी. ६७ संपत्सु महतां चित्तं भवत्युत्पलकोमलम् । आपत्सु च महाशैल-शिलासंघातकर्कशम्॥६॥ __ भावार्थ-संपत्तिवखते महापुरुषोनुं मन कमळसमान कोमळ रहे छे अने विपत्ति वखते ते महापर्वतनी शिला समान कर्कश बनी जाय छे. नहि तो आपत्ति सहन केम थई शके ? ६८

Loading...

Page Navigation
1 ... 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500