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. (४२८) स पंडितो यः करणैरखंडितः स तापसो यो निजपापतापकः । स दीक्षितो यः सकलं समीक्षते स धार्मिको यः परमर्म न स्पृशेत् ॥३०॥ __ भावार्थ-तेज पंडित छे के जे जितेंद्रिय छे, तेज तापस के जे पोताना पापने नष्ट करनार छे, तेज दीक्षित के जे बधुं जोइ शके छे अने तेज धार्मिक के जे परना मर्मने प्रगट करतो नथी. ३० सुकरं मलधारित्वं सुकरं दुस्तरं तपः । सुकरोऽक्षनिरोधश्च दुष्करं चित्तरोधनम् ॥३१॥ __ भावार्थ-मेलने धारण करवू-ते सुगम छे, दुस्तर तप तपq-ते पण सुगम छे, इंद्रियोने तावामा राखवी ते पण सुगम छे, पण मनने वश राखवू-ते दुष्कर छे३१ सुकृतस्य कृपा सारं सत्कर्म नरजन्मनः। विद्यायास्तत्त्वधीः सारं संतोषः शर्मणां पुनः ३२
भावार्थ-मुकृतनुं सार कृपा छे, नरजन्मनुं सार सत्कर्म छे, विद्यानुं सार तत्त्वबुद्धि छे अने सुखनुं सार संतोष छे. ३२