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(४०१) गरज सारे छे, घरमा स्त्री-मित्र समान छ रोगीने औषध मित्र समान छे अने परलोकमां धर्म मित्र समान छे. ९०
विश्वासप्रतिपन्नानां वंचने का विदग्धता । अंकमारुह्य सुप्तानां हंतुः किं नाम पौरुषम् ॥९॥
भावार्थ-जे पोताने विश्वासे रहेला छे-तेमने छेतरवामां कोई प्रकारनी चालाकीनी जरूर पडती नथी. कारण के जेओ पोताना उत्संग (खोळा ) मां सुतेला छे, तेमनो घात करनार शुं शूरवीर गणाय ? ९१ वारिजेनेव सरसी शशिनेव निशीथिनी। यौवनेनेव वनिता नयेन श्रीमनोहरा ॥९२॥
भावार्थ-सरोवर कमळोथी शोभे छे, रात्रि-चंद्रमाथी शोभे छे, स्त्री-यौवन-(लावण्य ) थी शोभे छ अने लक्ष्मी-न्यायथी अधिक शोभे छे. ९२ __ श्रीशांतिनाथादपरो न दानी दशार्णभदादपरो न मानी । श्रीशालिभदादपरो न भोगी श्रीस्थूलिभदादपरो न योगी ॥१॥