________________
( ३५४) रविः पारं याति प्रतिदिनमपारस्य नभसः क्रियासिद्धिः सत्त्वे वसति महतां नोपकरणे ४ ___ भावार्थ-पोताना रथनु एकज चक्र छतां, सात अश्वो पण सर्पोथी नियंत्रित छता अने निरालंब मार्ग तथा सारथि पण चरणरहित (पंगु) होवा छतां सूर्य, प्रतिदिन अपार आकाशनो पार पामे छे. खरेखर महापुरुषोना सत्त्व ( पराक्रम) मांज क्रियानी सिद्धि रहेल छे, पण तेमना उपकरणोमां नथी. ४ राज्ञि धामाण धामष्ठाः पापे पापाः सम समाः। लोकास्तमनुवर्तते यथा राजा तथा प्रजा ॥६॥ ___ भावार्थ-जो राजा धर्मिष्ठ होय, तो प्रजा धर्मी बने छे, राजा, पापी होय, तो ते पापिष्ठ अने राजा बनेमां समान होय, तो ते समान थाय छ, लोको राजानुंज अनुकरण करे छे. एटले जेवो राजा होय, तेवी प्रजा थाय छे. ५ __ रत्नैर्महाहैस्तुतुपुर्न देवा न भेजिरे भीमविषेण भीतिम् । सुधां विना न प्रययुर्विरामं न निश्चितार्थाद्विरमंति धीराः ॥६॥