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प्रथम उद्देशक - वस्त्र-संधान एवं बन्धन-विषयक प्रायश्चित्त
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जे भिक्खू अइरेगगहियं वत्थं परं दिवड्डाओ मासो धरेइ धरेंतं वा साइज्जइ॥ ५७॥
कठिन शब्दार्थ - वत्थस्स - वस्त्र के, पडियाणियं - प्रत्यनीक - थेगली या कारी, देइ - देता है - लगाता है, सिव्वइ - सीता है - टांका लगाता है, फालियगंठियं - फटे हुए कपड़े के किनारे को रफू कर गाँठ लगाना, फालियं - रफू किए बिना गांठ लगाना, गंठेइ - ग्रथित करता है - जोड़ता है, अतज्जाएणं - अन्यजातीय, गहेइ - ग्रथित करता हैजोड़ता है, अइरेगगहियं - अतिरिक्त - अधिक जोड़ आदि से युक्त वस्त्र।
भावार्थ - ४८. जो साधु फटे हुए वस्त्र के एक थेगली या कारी लगाता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
४९. जो साधु फटे हुए वस्त्र के तीन से अधिक थेगली लगाता है या थेगली लगाते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
५०. जो साधु अविधिपूर्वक वस्त्र सीता है - टांका लगाता है या सीते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है। .. ५१. जो साधु वस्त्र के फटे हुए किनारे को रफू कर एक गांठ लगाता है या गांठ लगाते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
५२. जो साधु वस्त्र के फटे हुए किनारे को रफू कर तीन से अधिक गांठें लगाता है या गांठें लगाते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
५३. जो साधु बिना रफू किए हुए वस्त्र के फटे हुए किनारे के एक गांठ लगाता है या गांठ लगाते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
५४. जो साधु बिना रफू किए हुए वस्त्र के फटे हुए किनारे के तीन से अधिक गांठे लगाता है या गांठें लगाते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
५५. जो साधु अविधिपूर्वक फटे वस्त्र को ग्रथित करता है - जोड़ता है या जोड़ते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है। .
५६. जो साधु फटे हुए वस्त्र को अन्य जाति के वस्त्र से ग्रथित करता है या ग्रथित करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है। .
५७. जो साधु अतिरिक्त जोड़ आदि से युक्त वस्त्र को डेढ मास से अधिक समय तक रखता है या रखते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
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