Book Title: Nishith Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 432
________________ एकोनविंश उद्देशक - अविहित काल में कालिक श्रुत मर्यादा उल्लंघन.... ३९९ सूरज उगने के समय पूर्व दिशा में जो लालिमा रहती है तब तक का समय पूर्व संध्या कही जाता है। वह लालिमा सूर्योदय से पूर्व कुछ अधिक समय तक और सूर्योदय के पश्चात् कुछ कम समय तक रहती है। दोनों का सम्मिलित काल लगभग एक मुहूर्त का होता है। सूरज छिपने के समय भी छिपने से कुछ पूर्व तथा छिपने के पश्चात् पश्चिम दिशा में लालिमा रहती है। वह छिपने से पूर्व कम समय तक एवं छिपने के बाद कुछ अधिक समय तक रहती है। दोनों का सम्मिलित काल लगभग एक मुहूर्त का होता है। उसे पश्चिम संध्या कहा जाता है। ____ दिन के मध्य का समय अपराह्न है। जितने मुहूर्त का दिन हो, इसके बीच का मुहूर्त अपराह्न संध्या कहा जाता है। सामान्यतः यह बारह और एक बजे के मध्य होती है। दिन की हानि-वृद्धि के अनुसार कभी-कभी वह पहले या पीछे भी हो जाती है। ___ रात्रि का मध्य काल अर्द्धरात्रि संध्या कहा गया है। जितने मुहूर्त की रात्रि होती है, उसके बीच का मुहूर्त अर्द्धरात्रि संध्या होता है। ___ पूर्व संध्या और पश्चिम संध्या का समय भिक्षु के लिए प्रतिक्रमण तथा प्रतिलेखन करने का है। उसमें स्वाध्याय करने से इन आवश्यक क्रियाओं में बाधा उत्पन्न होती है। ____ मध्याह्न और मध्य रात्रि का समय अशुभ माना गया है। लौकिक शास्त्रों का भी उसमें वाचन-पठन नहीं किया जाता। अतः आगमों का स्वाध्याय करना तो अनुपयुक्त है ही। ऐसी मान्यता है कि ये चारों संध्याएँ व्यन्तर देवों - भूत - प्रेतादिकों के भ्रमण का समय है। अतः किसी प्रकार का प्रमाद होने पर उन द्वारा उपसर्ग किया जाना आशंकित है। अविहित काल में कालिक श्रुत मर्यादा उल्लंघन विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू कालियसुयस्स परं तिण्हं पुच्छाणं पुच्छइ पुच्छंतं वा साइज्जइ॥९॥ जे भिक्खू दिट्ठिवायस्स परं सत्तण्हं पुच्छाणं पुच्छइ पुच्छंतं वा साइज्जइ॥१०॥ कठिन शब्दार्थ - पुच्छाणं - पृच्छाओं को, पुच्छइ - पूछता है, सत्तण्हं - सात। भावार्थ - ९. जो भिक्षु कालिकश्रुत की तीन से अधिक पृच्छाएँ (अकाल में) पूछता है या पूछते हुए का अनुमोदन करता है। १०. जो भिक्षु दृष्टिवाद की सात से अधिक पृच्छाएँ (अकाल में) पूछता है अथवा पूछते हुए का अनुमोदन करता है। ऐसा करने वाले भिक्षु को लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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