Book Title: Nishith Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 442
________________ एकोनविंश उद्देशक कठिन शब्दार्थ - दोण्हं - दो, सरिसगाणं संचिक्खावेइ - सम्यक् शिक्षा देता है, एक्कै - एक को । भावार्थ - २३. जो भिक्षु समान प्रतिभा वाले दो शिष्यों में से एक को सम्यक् शिक्षा प्रदान करता है एक को नहीं करता, एक को वाचना देता है, दूसरो को नहीं देता अथवा ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है, उसे लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। अदत्त वाचना ग्रहण संबंधी प्रायश्चित्त Jain Education International - - विवेचन - वाचना प्रदाता गुरु का अपने सभी शिष्यों के प्रति समानता का भाव रहे, यह उनके पथ की गरिमा के अनुरूप है। आचार्य, उपाध्याय आदि गुरुजन किसी के प्रति पक्षपात का भाव न रखे इस संबंध इस सूत्र में विवेचन हुआ है। सामान्यतः वाचना प्रदायक गुरु ऐसा नहीं करते, किन्तु आखिर वे भी हैं तो मानव ही । कदाचन आगे-पीछे के कटु-मृदु संबंधों के आधार पर उनके मन में भी ऐसा भाव आना आशंकित है। वे ऐसे अनुचित, असमीचीन भाव से अभिभूत न हों, अपने उच्च, महिमामय पद के अनुरूप पवित्र तथा निरवलेप मानसिकता बनाए रखें। ऐसा न होना दोषयुक्त, प्रायश्चित्त योग्य है । - सदृश एक समान प्रतिभा वाले, अदत्त वाचना ग्रहण संबंधी प्रायश्चित्त जे भिक्खू आयरियउवज्झाएहिं अविदिण्णं गिरं आइयइ आइयंतं वा साइज्जइ ॥ २४ ॥ कठिन शब्दार्थ अविदिण्णं बिना दी गई, गिरं शास्त्र वाणी, आइयइ आददाति ग्रहण करता है । भावार्थ - २४. जो भिक्षु आचार्य एवं उपाध्याय के (वाचना ) दिए बिना ही शास्त्रवाणी (वाचना) ग्रहण करता है (स्वयं भी अध्ययन करता है) या ऐसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है । विवेचन - धार्मिक जगत् में आगम वाचना शास्त्रानुशीलन तथा विद्याध्ययन मूलक उपक्रमों में गुरुमुख से ज्ञान प्राप्त करने का विशेष महत्त्व रहा है। क्योंकि आगमों में, शास्त्र में अनेक ऐसे सूक्ष्म गूढ एवं रहस्यपूर्ण विषय होते हैं जिन्हें गीतार्थ, गहन अध्ययनशील, अनुभूति प्रवण आचार्य, उपाध्याय आदि गुरुजन ही भलीभाँति जानते हैं। उनसे वाचना प्राप्त करने और अध्ययन करने से अध्येताओं को जो ज्ञान प्राप्त होता है, वह सर्वथा संशय रहित एवं ठोस ४०९ - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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