Book Title: Nishith Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 459
________________ निशीथ सूत्र मासिंयं परिहारट्ठाणं (जहा हेट्ठा) जाव दिवड्डो मासो ॥ ३७ ॥ कठिन शब्दार्थ - पक्खिया एक पक्ष की, दिवड्डो - द्वयर्ध डेढ (मास) । भावार्थ - ३२. छह मासिक प्रायश्चित्त वहन किए जाने वाले अनगार द्वारा (प्रायश्चित्त वहन काल के) प्रारम्भ, मध्य या अन्त में प्रयोजन हेतु या (विशेष) कारणपूर्वक एक मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन कर आलोचना करने पर न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है। ४२६ - Jain Education International इसके पश्चात् पुनः दोष आसेवित करने पर डेढ मास का प्रायश्चित्त आता है । . ३३. पंचमासिक प्रायश्चित्त वहन किए जाने वाले अनगार द्वारा ( इत्यादि वर्णन पूर्व की भाँति यहाँ ग्राह्य है) यावत् पुनः दोष आसेवित करने पर डेढ मास का प्रायश्चित्त आता है। ३४. चातुर्मासिक प्रायश्चित्त वहन किए जाने वाले अनगार द्वारा ( इत्यादि वर्णन पूर्व की भाँति यहाँ ग्राह्य है) यावत् पुनः दोष आसेवित करने पर डेढ मास का प्रायश्चित्त आता है। ३५. त्रिमासिक प्रायश्चित्त वहन किए जाने वाले अनगार द्वारा (इत्यादि वर्णन पूर्व की भाँति यहाँ ग्राह्य है) यावत् पुनः दोष आसेवित करने पर डेढ मास का प्रायश्चित्त आता है। ३६. द्विमासिक प्रायश्चित्त वहन किए जाने वाले अनगार द्वारा ( इत्यादि वर्णन पूर्व की भांति यहाँ ग्राह्य है) यावत् पुनः दोष आसेवित करने पर डेढ मास का प्रायश्चित्त आता है। ३७. एक मासिक प्रायश्चित्त वहन किए जाने वाले अनगार द्वारा ( इत्यादि वर्णन पूर्व की भांति यहाँ ग्राह्य है) यावत् पुनः दोष आसेवित करने पर डेढ मास का प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - इन सूत्रों में प्रायश्चित्त स्थापन आरोपण के संबंध में जो भिन्न-भिन्न रूप में विवेचन हुआ है, वह केवल प्रायश्चित्त विषयक समय की भिन्नता के अतिरिक्त पूर्ववर्ती सूत्र सं० २१-२६ के लगभग समान है। इन सूत्रों में प्रायश्चित्त के स्थापन एवं आरोपण के संबंध में जो पृथक्-पृथक् विशद् विश्लेषण हुआ है, उससे बोधव्य तथ्य स्पष्ट हैं। उन्हें आत्मसात करते हुए भिक्षु प्रायश्चित्त विषयक स्थापन- आरोपण में समुद्यत एवं सक्रिय रहे, ऐसा इन सूत्रों का हार्द है । : : एक मासिक प्रायश्चित्त प्रस्थापन आरोपण वृद्धि दिवड्डमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466